बलिया के मूल निवासी हरेराम सिंह पश्चिम बंगाल की जामुड़िया विधानसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के विधायक चुने गए हैं. हरेराम सिंह ने वामपंथी गढ़ में तृणमूल कांग्रेस को जीत दिलाई है.
जितेंद्र तिवारी के बगावत के बाद तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बर्द्धमान जिले में एक हिंदी भाषी नेता की तलाश थी जो हरेराम सिंह से पूरी हुई. जामुड़िया जैसी सीट को तृणमूल कांग्रेस की झोली में डालकर हरेराम सिंह ने खुद को साबित किया. जितेंद्र सिंह की जगह लेकर हरेराम सिंह के रूप में ममता बनर्जी को एक भरोसेमंद नेता मिल गया है.
हरेराम सिंह मूल रूप से बलिया जिले के मनियर कस्बा के उत्तर टोला निवासी हैं. हरेराम सिंह तृणमूल कांग्रेस के गठन के समय से ही इस पार्टी से जुड़े हुए हैं. पार्टी ने भी उन पर भरोसा करते हुए इस कमजोर सीट मानी जा रही जामुड़िया विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. हरेराम सिंह ने तकरीबन डेढ़ माह तक क्षेत्र में जमकर पसीना बहाया. यहां तक कि लगातार प्रचार करते हुए एक रोड शो के दौरान वे अस्वस्थ भी हो गए थे और सीधे उन्हें वहां से अस्पताल भेजा गया था.
यह उनकी मेहनत का नतीजा था कि बिना किसी बड़े चेहरे के प्रचार में लग कर उन्होंने जामुड़िया में पहली बार तृणमूल का परचम लहराया एवं जीत हासिल कर अपनी योग्यता प्रमाणित की. उन्होंने भाजपा के तापस राय व माकपा के आइशी घोष को हराकर जामुड़िया सीट पर कब्जा जमाया है.
श्रमिक संगठन को नंबर एक बनाया
हरेराम सिंह ने तृणमूल कांग्रेस में अपना सफर पार्टी के श्रमिक संगठन से की थी. वे कोयला श्रमिक रहे हैं, वाममोर्चा के समय से ही वे तृणमूल ट्रेड यूनियन के कोयला खदान श्रमिक कांग्रेस के महामंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे थे. वे निष्ठा के साथ टीएमसी के श्रमिक संगठन से जुड़े रहे. उन्होंने लगातार कोयला खदान श्रमिक कांगेस को मजबूत करने का प्रयास किया. ईसीएल का विस्तार पूरे जिले तक है, जहां स्थायी 50 हजार श्रमिक हैं. इस कारण उन्होंने पूरे जिले में श्रमिक संगठन के माध्यम से तृणमूल कांग्रेस को मजबूत करने पर जोर लगाया एवं संगठन को ईसीएल का सबसे बड़ा संगठन स्थापित किया. जिसका फायदा उन्हें इस चुनाव में भी मिला.
तृणमूल कांग्रेस में 9 महीने पहले संभाली कमान
तृणमूल कांग्रेस में सीधे तौर पर उनकी एंट्री नौ माह पहले हुई. चुनाव को लेकर जब प्रशांत किशोर के कहने पर ममता बनर्जी ने अपनी टीम तैयार की तो उसमें हरेराम सिंह को जिला संयोजक के रूप में एंट्री मिली एवं उन्हें दो विधानसभा क्षेत्रों का दायित्व मिला. उन्होंने आपसी मतभेद को भुलाकर सभी कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरने पर जोर दिया एवं इसमें तृणमूल को सफलता भी मिली. सभी की एकजुटता के कारण तृणमूल ने अप्रत्याशित जीत हासिल की. खुद वे भी ऐसी सीट पर जीते जहां तृणमूल कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष वी शिवदासन दासू, ट्रेड यूनियन के जिलाध्यक्ष प्रभात चटर्जी भी हार मान चुके थे.
43 साल बाद ध्वस्त हुआ माकपा का लाल दुर्ग
जामुड़िया की पहचान माकपा के लाल दुर्ग के रूप में थी. जहां 43 वर्षों से माकपा का दबदबा था. वर्ष 2011 में जब तृणमूल की सरकार पहली बार राज्य में बनी, उस समय भी माकपा के इस लाल दुर्ग पर माकपा का ही कब्जा रहा. वर्ष 2016 में भी तृणमूल कांग्रेस इस लाल दुर्ग पर फतह नहीं कर पायी. लेकिन तृणमूल के इस सपने को वर्ष 2021 में हरेराम सिंह ने पूरा किया एवं लाल दुर्ग को ध्वस्त कर तृणमूल का परचम लहराया.
(बलिया से कृष्णकांत पाठक की रिपोर्ट)