चुनावी चकल्लस – हाल कैसा है जनाब का, क्या खयाल है आपका

  • सर्दी-खांसी में भी हाल पूछने लगे सियासतदां
  • कल तक जिनका सुराग भी मिलना था मुश्किल
  • गांवों में बढ़ी विधान सभा चुनाव की हनक

जयप्रकाशनगर (बलिया) से लवकुश सिंह

विधान सभा चुनाव की घंटी बज चुकी है. गांव की राजनीतिक गलियारों में चहल पहल शुरू हो चुकी है. विधान सभा क्षेत्र के अंतर्गत बैरिया गांव के प्रमुख बाजारों की रौनक एक बार फिर लौटने लगी है. चाय की दुकान हो या पान की-कमोवेश हर दुकान के सामने या आसपास दो से चार-पांच लोगों का जत्था चुनावी-रामायण बांच रहे हैं.चुनाव की घोषणा के बाद ही टीका-टिप्पणी व जोड़-घटाव का शतरंज बिछ चुका है. तमाम सियासी दलों के कार्यकर्ता ख्वाब बुनने लगे हैं. वोटरों के सच्चे सेवक के तौर पर पेश करने का रिहर्सल भी शुरू हो चुका है.राजनीतिक कार्यकर्ताओं की इस कबायद से सभी को लगने लगा है कि अब चुनाव आ चुका है.

आम जनता को ताज्जुब हो रहा है. कल तक जो किसी बड़े हादसे, मौत आदि की घटनाओं में भी किसी पीडि़त का हाल जानने नहीं पहुंचते थे, आज सर्दी-खांसी या बुखार में भी कुशल-क्षेम पूछने लगे हैं. मतदाता भी मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं. आखिर वे भी तो इस ‘मौसमी आत्मीयता‘ से  अनभिज्ञ नहीं रह गये हैं. दूसरी तरफ मतदाता भी अपने सभी पूराने हिसाब-किताब को लिख-पढ़ कर तैयार कर रही है. आखिर अपने कथित रहनुमाओं से सवाल भई तो करना है.

गांव की राजनीति में मतदाताओं की किस्म

हर चुनाव से विधान सभा चुनाव ज्यादा खास इसलिए है क्योंकि इसमें गांव स्तार के हर तरह के हिसाब किए जाते हैं । नेताओं की तरह ही मतदाता भी कई प्रकार के होते हैं. पहले मतदाता वे हैं जो गंवई गोलबंदी के सांथ चलते हैं । मसलन जिधर गांव जाता है, उनका वोट भी उधर ही खिसक जाता है. दूसरे मतदाता ठेका या अन्य व्यहवसाय के तहत लाभ की मंशा से राजनीतिक गुणा-गणित फिट बिठाने लगते हैं. तीसरे किस्म के मतदाता सही उम्मीदवार की तलाश में वोट डालते हैं । वहीं चौथे नंबर पर ऐसे भी मतदाता महज अपनी मौज-मस्ती से मतलब रखते हैं.उनसे निबटने के मद्देनजर लगभग दलों के कार्यकर्ता और उनके रहनुमा अपनी-अपनी गणित फीट करने में लग गए हैं. जाहिर है अलग-अलग जगहों के लिए अलग-अलग मंत्रों की व्यवस्था भी संभावित प्रत्याशियों के पास मौजूद है. इन सब से अलग कहीं नोटबंदी पर नफा-नुकसान का आकलन हो रहा है, तो कहीं सपा के आपसी झगड़े की चर्चा है. इस कड़ी में विकास का हिसाब-किताब अभी धुंधली जरूर है, किंतु वह फाईल भी जनता तैयार कर रही है.

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