प्राइवेट नौकरी छोड़ खेती कर किसान ने बदली अपनी किस्मत, लोगों के लिए बना प्रेरणा स्रोत
बलिया. मन और लगन से किया गया हर काम सफलता दिलाने में कामयाब सिद्ध होता है. यही लगन आगे चलकर औरों के लिए भी प्रेरणादायक सिद्ध होता है.
आज ऐसे ही किसान के बारे में हम आपको बताएंगे जिसने अपने जिंदगी का ज्यादा समय कृषि में ही दे दिया. अंत में उसे सफलता ऐसी मिली जिसको देख आज इनके रास्तों पर दूसरे लोग भी चलना कहीं न कहीं सफलता का कारण मान रहे हैं. यह किसान आज अपने क्षेत्र के लगभग दो दर्जन से ऊपर लोगों को रोजगार भी दिया है.
हम बात कर रहे हैं जिले के रतसर आमडरिया के रहने वाले किसान धीरेंद्र कुमार शर्मा की जो मछली पालन के साथ केला की बागवानी कर लाखों कमा रहे हैं. किसानी में इन्होंने वह मुकाम हासिल किया है.
जिसे आज अन्य किसान भी अपना रहे हैं. इनको देखकर कई किसान मछली पालन के साथ केला की बागवानी शुरू कर दिए हैं. किसान धीरेंद्र जी ने कहा, ‘मैं पहले प्राइवेट नौकरी के चक्कर में इधर-उधर भटकता रहा. लेकिन उस दौरान भी किसानी कहीं न कहीं हमें अपनी तरफ खींचती रही.
अंत में मैंने अपना पूरा मन किसानी में लगा दिया और आज मुझे वह मुकाम हासिल हुआ जो मेरा सपना था. आज मछली पालन और बागवानी से कम से कम शुद्ध बचत 40 लाख की होती है’.
ये है इस किसान की कहानी
किसान धीरेंद्र वर्तमान में मछली पालन और केला की बागवानी कर खुद को न सिर्फ समृद्ध बनाया है. बल्कि तमाम किसानों को भी नया आयाम दिखाया है. इनकी खेती देखकर आसपास के लोग कृषि के तरफ़ आकर्षित हुए हैं.
धीरेंद्र सन 1986 में जिले के ही श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय से पढ़ाई के बाद नौकरी के तलाश में वर्षों भटकते रहे. दौरान इनको मुंबई में नौकरी मिली प्राइवेट सेक्टर की नौकरी में दिन-रात मेहनत के बाद भी इनका सपना कहीं न कहीं अधूरा रह जाता था.
उस दौरान भी इनका मन खेतीबारी के तरफ आकर्षित होता रहता था. आखिर में सन 1995 में यह गांव पर आए और पैतृक कारोबार खेती में जुट गए.
कृषि विभाग की गोष्ठियों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेते रहे. 2017 में निर्धारिया मत्स्य विभाग में शिविर का आयोजन हुआ. जिसमें शामिल होकर धीरेंद्र मछली पालन की तरकीब सीखी और अपने किसानी में इसको उतारा. मछ्ली पालन के साथ ही बागवानी का प्रशिक्षण भी लिया और केला की बागवानी भी लगा दिया.
इस जगह से लाते हैं मछलियों के खास बीज
धीरेंद्र अपने पोखरे में रूपचंदा और ग्रासक्रॉप जैसी तमाम वैरायटी की मछलियों को पाले है. इन खास मछलियों के खाने के लिए दाने भी खास क्वालिटी के लाते है. इन मछलियों का बीज बिहार के बक्सर और छपरा से लाई जाती है. शुरुआत में मछली मार्शल दान 1 इंच का खिलाते हैं. जैसे-जैसे मछली बड़ी होती है.
इसी ब्रांड के जो दाने अधिक फायदेमंद होते हैं. उसे खिलाते हैं बताते हैं कि लगभग 6 महीने में मछलियां तैयार हो जाती हैं. इन मछलियों के देखभाल में लगभग 3 लाख के करीबन लागत आती है और शुद्ध बचत कम से कम 40 लाख हो जाती है. धीरेंद्र ने खुद अपने बेटा को भी इस केले की बागवानी और मछली पालन में शामिल किया है.
बेटा पॉलिटेक्निक कर नौकरी की तलाश में है. उसे भी इस कार्य में लगाया है. क्योंकि नौकरी की अपेक्षा इसमें आय भी अधिक है. लिहाजा बच्चों की रुचि भी अब बढ़ने लगी है.
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