बलिया से कृष्णकांत पाठक
बैरिया थाने पर कब्जा करने की नीयत से बलिया के कोने-कोने से हजारों लोगों का हुजूम इकट्ठा हुआ. सबसे पहले बैरिया थाने पर लोग टूट पड़े और घुड़साल को लोगों ने जमींदोज कर दिया. इस घटना से भड़की ब्रिटिश पुलिस ने भीड़ पर गोलियों की बौछार कर दी. नारायणगढ़ निवासी युवा कौशल किशोर सिंह बैरिया थाने पर तिरंगा फहराते हुए पुलिस की गोली से शहीद हो गए.
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पुलिस की गोलियों से सैकड़ों लोग घायल हुए और 19 लोग शहीद हुए. आक्रोशित लोगों ने थाने के सामानों को जला दिया. थाने की इमारत को चकनाचूर कर दिया. बांसडीह थाने एवं तहसील के रिकॉर्ड को आजादी के दीवानों ने जला दिया. इसके बाद तिरंगा फहरा दिया गया. सहतवार थाने को ध्वस्त कर दिया गया. टाउन एरिया के दफ्तर में आग लगा दी गई. वहां भी थाने के सामानों को जला दिया गया. वस्त्रापुर, कोरंटाडीह, कोटवा नारायणपुर के पोस्ट ऑफिस के कागजात जला दिए गए. कार्यालयों पर तिरंगा फहरा दिया गया.
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भरौली के पास सड़क, पूल लक्ष्मणपुर बसंतपुर के पुलों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया. ताकि उस रास्ते से ब्रिटिश सेना बलिया न पहुंच सके. गांव में पुलिस द्वारा गोली चलाने से रामसागर गुप्त शहीद हो गए आठ व्यक्ति गिरफ्तार कर लिए गए, जिसमें शिव नारायण सिंह, मांधाता सिंह, शिवमणि सिंह, जगदीश सिंह पर मुकदमा चला.
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आक्रोशित आजादी के दीवानों ने सिपाहियों की आठ बन्दूक व कारतूस छीन लिया. बासडीह में 20000 क्रांतिकारियों की भीड ने थाना, तहसील, डाकघर आदि पर कब्जा कर के तिरंगा फहरा दिया. खजाने एवं तहसील में जो रुपए मिले, उनको उन्हीं के कर्मचारियों में बांट दिया गया. इस प्रकार यहां पंचायती शासन व्यवस्था कायम हो गई. प्रमुख क्रांतिकारी रामेश्वर शर्मा, लक्ष्मण सिंह, शिवकुमार लाल, काशीनाथ राम, जटाधारी पाठक, सिराजुद्दीन अहमद, जमुना सिंह, डिग्री उपाध्याय, सुधाकर पांडेय, निरंजन सिंह, कुलदीप सिंह, गोपाल तिवारी, रामचंद्र, मुख्तार, शिवदत्त प्रसाद, रामजन्म सिंह, रामसेवक तिवारी, राम लक्ष्मण पांडेय इसमें शामिल रहे. इस पंचायती शासन ने एक बहुत पुराने मुकदमे का भी फैसला दिया जो आज भी मान्य है. शासन ने एक रुपए का 10 सेर गेहूं का भाव तय किया. जो पूरे तहसील में लागू हुआ.
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