कृषि भारतीय समाज की जीवन धारा है: मस्त

किसान आंदोलन कभी भी सत्ता के लिए नहीं, बल्कि देश समाज व किसान के हित के लिए होता है

बैरिया(बलिया)। भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व भदोही सांसद वीरेंद्र सिंह “मस्त” ने कहा कि किसी भी हालत में भारत का किसान ना तो अपना उत्पाद दूध सड़क पर बहा सकता है, और ना ही फल और सब्जियां सड़क पर वाहनों से रौंदवा सकता है. ऐसा वह देख भी नहीं सकता. वह बर्दाश्त नहीं कर सकता. किसी किसान से पूछ कर तो देखें. यह सब करने वाले कुछ दूसरे ही तरह के लोग हैं. जिन्हें खेती किसानी से कोई लेना देना नहीं है. वह यह नहीं समझते की कृषि भारतीय समाज की जीवन धारा है. सड़क पर दूध बहाने व सब्जियों फलों को रौंदवाने वाले लोगों के पाखंड को भारत के किसान भली भांति समझते हैं.

“मस्त” मंगलवार को देर शाम अपने पैतृक गांव दोकटी में पत्रकारों से वार्ता में उक्त बात कहे. लंबी चर्चा के दौरान “मस्त” ने कहा कि किसान आंदोलन कभी भी सत्ता के लिए नहीं, बल्कि देश समाज व किसान के हित के लिए होता है. आंदोलन की आग में हाथ सेंक रहे लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ग्राम पंचायत सदस्य पद से लेकर सांसद तक हर चुना हुआ जनप्रतिनिधि सत्ता का हिस्सा होता है. उसकी जिम्मेदारी होती है कि सरकार की योजनाओं का लाभ वह जनता तक पहुँचाने में मदद करे. वह यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि

योजनाओं को नहीं जानना और समझना भी काम ना होने, लाभ नहीं मिल पाने की एक सबसे बड़ी वजह होती है.

अब राहुल गांधी और सिंधिया किसान समस्या के बारे में क्या समझेंगे?
किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया कि आजादी के बाद पहली बार देश की सरकार ने कृषि बजट में 52 प्रतिशत हिस्सा रखा है. तमाम योजनाएं लागू की गई हैं. उन योजनाओं को जाने, समझे, किसानों को जागरूक करें, उन्हें लाभ दिलवाएं. यह नैतिक जिम्मेदारी सत्ता या विपक्ष का कोई भी चुना हुआ जनप्रतिनिधि, समाज का जागरूक वर्ग व पत्रकारों की भी है. जहां अवरोध मिल रहा है उसे ठीक करने की कोशिश करें.

उदाहरण दिया के सरकार ने मेड़बंदी, मेड पर पेड़ लगाने, बांस की खेती, दुग्ध उत्पादन, जल संरक्षण, गोबर की खाद पर सब्सिडी, गौशाला योजना, ऑर्गेनिक खेती जैसी तमाम योजनाएं चलाई हैं. अगर किसान नहीं समझ पा रहा है तो उसे समझाएं. उसे जागरूक करें. उसे लाभ दिलवाएं. तब वह उत्साहित होकर काम करेगा. श्रम से समृद्ध होने की योजनाओं को नहीं जानना भी पिछड़ने की प्रमुख वजह होती है. जब लागत कम होगी तभी किसानों का लाभ बढ़ेगा. यह बात तो एक किसान ही समझ सकता है. राहुल गांधी व सिंधिया यह कैसे समझ पाएंगे कि किसान कभी किसी भी कीमत पर अपना उत्पाद सड़क पर न तो बहा सकता है, और ना ही रौंदवा सकता है. अरे वह तो इसे बर्दाश्त ही नही कर सकता. चुटकी लेते हुए कहे कि जिस देश का किसान मक्के की एक बाल तोड़ लेने पर 200 मीटर तक दौड़ाता है, और मांगने पर झोला भर के दे देता है. उस देश के किसानों के उत्पाद को सड़क पर बहाने वाले लोग उसके मनोभावना, उसके दु:ख, पीड़ा, परेशानी कभी नहीं समझ पाएंगे. वार्ता के दौरान उनके साथ सुशील पाण्डेय, रामप्रकाश सिंह, आलोक सिंह, कन्हैया सिंह आदि लोग रहे.

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