
जी हां, यहां जिंदा है कबड्डी की वही पुरानी परंपरा
जेपी के गांव लाला टोला में हर दिन होता है कबड्डी का आयोजन
लवकुश सिंह
आज सारा जमाना क्रिकेट पर फिदा है. बच्चे-बच्चे की जुबान पर क्रिकेट छाया हुआ है, किंतु जेपी के गांव सिताबदियारा के लाला टोला में आज भी कबड्डी खेल की वह पुरानी परंपरा आज भी कायम है.यहां कबड्डी के दौरान-चल कबड्डी आस लाल, मर गए प्रकाश लाल, मेरा मूंछ लाल-लाल-लाल-लाल, या कबड्डी-कबड्डी -कबड्डी पढ़ते हुए एक-दूसरे दल के खिलाड़ी अपने विपक्ष के टीम को ललकारते हैं.
This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE
गांव के लोग भी इस खेल को देखने के लिए काफी दिलचस्पी दिखाते हैं. यहां कबड्डी खेल का नेतृत्व कर रहे रामेश्वर टोला निवासी अरूण सिंह ने बताया कि यहां कबड्डी खेल का आयोजन कोई और नहीं बल्कि युवा खुद से करते हैं. अपने में ही एक शर्त के तहत इनाम भी रखते हैं. हर दिन जो टीम विजयी होती है, वह उस इनाम की हकदार होती है.
यह कबड्डी भी यहां घेरे के अंदर वाली नहीं होती. हर दिन खुली कबड्डी का ही आयोजन होता है. इस क्रम में जो खिलाड़ी पकड़ा जाता है. वह मृत होकर मैदान से बाहर बैठ जाता है. बचे खिलाड़ी अंत तक लड़ते रहते हैं. यहां ग्रामीण भी इस खेल को क्रिकेट से ज्यादा बेहतर मानते हैं. यहां मौजूद दर्शकों में दर्जनों ने यह बताया कि क्रिकेट और कबड्डी में काफी अंतर है. कबड्डी हमारा पुराना खेल है और इस खेल से शरीर भी तंदरूस्त रहता है, जबकि क्रिकेट से अंग्रेजियत की बू आती है.