कहीं हाथ ऊपर है, कहीं गजराज भारी है, कहीं फूल उग रहे हैं, कहीं साइकिल सवारी है

रसड़ा (बलिया) से संतोष सिंह 

विधान सभा चुनाव का प्रचार प्रसार नामांकन के बाद धीरे धीरे जोर पकड़ने लगा है.  इस बार के भी चुनाव ने  वही पुराने योद्धाओ द्वारा चुनावी समर में एक दूसरे को पटखनी देने के लिये जोर आजमाइश शुरू हो गयी है. बस बदला है तो राजनीति के धुरंधरों ने अपने अपने हथियारों के तरकश में एक एक नया हथियार.

इन नये हथियारों के द्वारा चुनावी वैतरणी पार करने की फिराक में प्रत्याशी है. विधान सभा चुनाव में भी बसपा से उमाशंकर सिंह, सपा से पूर्व विधायक सनातन पाण्डेय, वहीं भाजपा से पूर्व विधायक रामइकबाल सिंह के बीच तिकोना संघर्ष होना तय है. इस बार के चुनाव में सुभासपा की छड़ी एवम कांग्रेस का पंजा चुनाव चिन्ह नहीं दिखेगा.

वैसे पिछली बार की चुनाव में ताल ठोकने वाले सुभासपा एवं कांग्रेस भाजपा एवं कांग्रेस के साथ खड़ी है. वहीं सुभासपा से नाता तोड़ कर कौमी एकता दल बसपा के साथ मिलकर दो दो हाथ कर रही है. मतदाता वही, प्रत्याशी वही, केवल उन मतदातों के लिए नया है, जो युवा मतदाता पहली बार इस चुनाव में मत डालेंगे. सपा अखिलेश सरकार के कामकाज एवं कांग्रेस के बल पर तथा भाजपा केन्द्र सरकार के उपलब्धियों एवम सुभासपा के सहयोग से तो वहीं बसपा विधान सभा में विकास के साथ साथ कौमी एकता के विलय कराकर समर में एक दूसरे को पटकनी देने की फिराक में है.

कल तक पानी पी पी कर कोसने वाले नेता कार्यकर्ता अब अपने प्रत्याशियों को हौसला आफजाई करने में लगे है. नेताओं एवं कार्यकर्ताओ द्वारा जनता को अपने पाले लाने के लिए आरोप प्रत्यारोप का दौर चालु हो गया है. जैसे जैसे चुनाव की तिथियां नजदीक आती जाएंगी, वैसे वैसे राजनीतिक पैतरे भी बदली जायेगी. अब तो आने वाला वक्त ही बतायेगा ऊंट किस करवट बैठेगा.

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