चंदन तिवारी
कलकता में रहनिवासी राखेवाला हिंदी के अप्रतीम विद्वान, भोजपुरी लोकराग अउरी भोजपुरी धरती के जानकारी रखेवाला, खैरख्वाही करेवाला अद्वितीय पुरुष अउर हमरा के बहुत—बहुत प्यार—दुलार देबेवाला परम आदरणीय कृष्णबिहारी मिश्र बाबूजी आज 85 साल के हो गईनी. कुछ माह पहिले उहां से लंबा बात भइल रहे. फेरू हम पूछले रहीं कि बाबूजी बताईं कि राउर जनमदिन पर हम कवन गीत गा दीं, हम गावल चाहत बानी, रउआ के समर्पित करल चहत बानी—उहां के कहनी—चनन, हमरा तो भोजपुरी के मय विधा के गीतवे निक लागेला रे. सब कान में मिसरी लेखा मिठापन घोलेला, शीतलता देला बाकि हमार जनम तो छठ के दिन नु भईल रहे अउरी अबकी संजोग देख कि छठे के दिन हमार अंगरेजीवाला जनमदिनवा भी मिल रहल बा ता छठे के गीत हमरा के सुनईहे. आझू हम आपन कुल छठ गीत बाबूजी के 85वां जनमदिन पर समर्पित कर रहल बानी. उहां के हमेशा स्वस्थ—सानंद रहीं अउरी हमरा के प्यार दुलार देके, नेह छोह बरसा के उर्जा से भरत रहीं, एही कामना—शुभकामना के साथे (Chandan Tiwari के फेसबुक वाल से)
कृष्ण बिहारी मिश्र – एक नजर
जन्म – 5 नवंबर 1936, बलिहार, बलिया, उत्तर प्रदेश
विधाएं – निबंध, पत्रकारिता, जीवनी, संस्मरण, संपादन, अनुवाद
मुख्य कृतियां – पत्रकारिता : हिंदी पत्रकारिता : जातीय चेतना और खड़ी बोली साहित्य की निर्माण-भूमि, गणेशशंकर विद्यार्थी, पत्रकारिता : इतिहास और प्रश्न,
ललित निबंध संग्रह : बेहया का जंगल, मकान उठ रहे हैं, आंगन की तलाश, अराजक उल्लास, गौरैया ससुराल गया. विचार प्रधान निबंध संग्रह : आस्था और मूल्यों का संक्रमण, आलोकपंथा, परंपरा का पुरुषार्थ, माटी महिमा का सनातन राग, न मेधया, भारत की जातीय पहचान : सनातन मूल्य. संस्मरण : नेह के नाते अनेक
जीवनी : कल्पतरु की उत्सव लीला (रामकृष्ण परमहंस). संपादन : हिंदी साहित्य : बंगीय भूमिका, श्रेष्ठ ललित निबंध, कलकत्ता – 87, नवाग्रह (कविता संकलन), समाधि (त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका), अनुवाद : भगवान बुद्ध (यूनू की पुस्तक का अनुवाद, कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रकाशित)
सम्मान – मूर्तिदेवी पुरस्कार (भारतीय ज्ञानपीठ)
कृष्णबिहारी जी के निबंध संग्रह ‘बेहया का जंगल’, शुरू-शुरू में पढ़ा, तो 1942 के विद्रोही बलिया का मिजाज, पृष्ठभूमि, गांवों के स्वाभिमान, मूल्यों और मानस को निकट से समझ और महसूस कर सका – हरिवंश (सांसद)
साहित्य की विविध विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर. पाल-पोस कर बड़ा करने वाली माटी का जितना मोह, कर्मभूमि के प्रति भी उतनी ही अगाध आस्था. साहित्य, व्यक्तित्व और कृतित्व के संदर्भ में. शब्दकोश के सारे विशेषण भी जिनके लिए कम पड़ जाएं, उन्ही कृष्णविहारी जी (मेरे जैसे कितने विद्यार्थियों के लिए चाचाजी) को जन्मदिन पर शताधिक आयु की कामनाएं – ओमप्रकाश अश्क (वरिष्ठ पत्रकार)