

पुराने प्रत्याशी की बगावत, कमजोर उम्मीदवार, हार का डर, प्रतिष्ठा का प्रश्न या कुछ और ?
आलोक श्रीवास्तव
विधानसभा चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री अपने दल के उम्मीदवार के लिए प्रचार तो करते हैं, लेकिन इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न शायद ही बनाते हैं. जैसा बनारस की सीटों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष हो रहा है. जब प्रधानमंत्री को लगातार तीन दिन प्रचार के लिए अपने संसदीय क्षेत्र में रुकना पड़े तो इसकी महत्ता को समझा जा सकता है. लेकिन प्रश्न ये है कि पीएम को काशी में अपनी पूरी ताकत क्यों झोकनी पड़ रही है. राजनीति के जानकारों का कहना है-बगावत. इसके कारण उत्पन्न हुई हार की स्थिति और हार के बाद विपक्षियों के हमले का डर.

शहर दक्षिणी से श्यामदेव राय पिछले सात बार से विधायक हैं. जानकारों का कहना है कि शहरी क्षेत्र के विधायकों का विकास में खास भूमिका नहीं होती, सब कुछ मौजूद रहता है, थोड़ी बहुत जो कमियां होती हैं विधायक के जरिए दुरुस्त हो जाती है. आम आदमी को अपने विधायक से एक ही उम्मीद होती है कि वह उनके सुख-दुख में शामिल हों, मिलने पर दुआ सलाम हो जाए. इस मामले में श्यामदेव राय खरे उतरते हैं और हर समय उपलब्ध रहते हैं, लेकिन उनका टिकट काटकर नए उम्मीदवार नीलकंठ तिवारी को दे दिया गया है. इससे श्यामदेव राय के समर्थक तो नाराज हैं ही. उन्होंने भी प्रचार करना छोड़ दिया है, ये घातक है. प्रधानमंत्री शुक्रवार को उन्हें अपने साथ बाबा के दर्शन के लिए ले गए पर इससे बात बनी नहीं.

दूसरी तरफ कांग्रेस-सपा गठबंधन के उम्मीदवार राजेश मिश्र बनारस के कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं, इस कारण जनता में उनकी पैठ है. इसके अलावा गठबंधन के कारण मुस्लिमों का भी समर्थन है. इस कारण उनकी स्थित भी मजबूत है. कैंट क्षेत्र से वर्तमान में भाजपा विधायक ज्योत्स्ना श्रीवास्तव के बेटे सौरभ को टिकट मिला है. वह पहली बार चुनाव मैदान में हैं. पृष्ठभूमि राजनीतिक है पर खिलाड़ी नए हैं. इसके विपरीत कांग्रेस- सपा गठबंधन से अनिल श्रीवास्तव मैदान में हैं. वह पिछले बार भी कांग्रेस से उम्मीदवार थे. राजनीतिक रूप से परिपक्व हैं. इसलिए अनिल को कमजोर करके आंकना ठीक नहीं है. एक ही जाति कायस्थ से होने के कारण वोट का बंटना भी तय है. शहर उत्तरी से वर्तमान भाजपा विधायक रवींद्र जायसवाल ही मैदान में हैं और उनके सामने हैं बसपा उम्मीदवार सुजीत कुमार मौर्य. 2012 में सुजीत की हार काफी कम वोटों से हुई थी. कम वोट कभी जीत में तब्दील हो सकती है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है .
कुल मिलाकर देखें तो भाजपा की तीनों सीट फंसी हुई है. चुनावी विश्लेषक इसे सीट वितरण में दूरदर्शिता का अभाव बता रहे हैं. क्योंकि बनारस के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं इसलिए इन सीटों पर पराजय प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाएगा, सो पीएम को बनारस में डेरा डालना पड़ा है. ये तीनों सीट वर्तमान में भाजपा के पास है, इसे कम से कम बचाए रखना जरूरी है. बनारस जिले में वैसे विधानसभा की 7 सीटें है, इनमें पांच वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में आती हैं. जिसमें से तीन सीट भाजपा के पास है, ये तीनों शहर की हैं. बनारस में सातवां और अंतिम चरण का चुनाव 8 मार्च को है. बाबा की नगरी और प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र से चुनाव की पूर्णाहुत होगा. 11 मार्च को परिणाम आएगा, 13 को होली है. देखना है होली का रंग किस पर चढ़ता है.