बिहार विधानसभा चुनावों में कामयाबी के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का अगला निशाना अब यूपी है। ओवैसी अगले साल की शुरूआत में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है। खास बात यह है कि यूपी में ओवैसी का मुख्य टारगेट अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी है। मकर संक्रांति से एक दिन पहले वाराणसी में उतरने के तुरंत बाद उन्होंने कहा कि अखिलेश सरकार के शासन में उन्हें 12 बार यूपी में प्रवेश करने से रोका गया और 28 अवसरों पर उनके आगमन को अनुमति देने से इनकार कर दिया गया।
ओवैसी ने कहा कि विरोधियों से उनकी पार्टी को दो गंभीर आरोपों का सामना करना पड़ता है- एक ‘वोटकटवा’ पार्टी और दूसरा आरोप ‘भाजपा का एजेंट’ होने का। लेकिन उनका कहना था कि उनके विरोधी चाहते थे कि लोग उन्हें गुलामों की तरह वोट देते रहें और अन्य राजनीतिक दलों को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। जब एआईएमआईएम कोई चुनाव लड़ती है, तो उनका मकसद इसे जीतना होता है, न कि किसी और की जीत या हार सुनिश्चित करना।
AIMIM के ‘बीजेपी का एजेंट’ होने पर, ओवैसी का करारा जवाब था कि उनकी पार्टी के नेताओं को इस तरह के आरोपों की परवाह नहीं करनी चाहिए। बिहार चुनाव में, AIMIM धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक मोर्चे में था और हर कोई जानता है कि इसका फायदा किसे हुआ। उनका इशारा उन पांच सीटों के लिए था जो AIMIM ने पहली बार बिहार विधानसभा चुनावों में जीती हैं।
दरअसल, बिहार ने ओवैसी को बड़ी ताकत दी है, एआईएमआईएम 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 38 सीटों पर चुनाव लड़ी और एक भी सीट नहीं जीती। पार्टी का चुनाव में महज 0.24 फीसदी वोट शेयर रहा। इसके बावजूद ओवैसी ने ऐलान किया कि एआईएमआईएम यूपी में कुल सीटों में से लगभग 25 प्रतिशत सीटों पर चुनाव लड़ेगी, मतलब यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से AIMIM लगभग 100 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेगी।
जहां तक 2022 के चुनावों में जीतने वाली सीटों की संख्या और वोट शेयर में वृद्धि का सवाल है, एआईएमआईएम की नजर समाजवादी पार्टी पर है, जिसे मुसलमानों के ज्यादातर वोट मिलते हैं। ध्यान रहे कि ओवैसी की पार्टी ने बिहार में सबसे ज्यादा नुकसान ओवैसी की पार्टी को पहुंचाया था और ऐसा ही करिश्मा वह उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ कर सकती है।
ओवैसी की ताकत का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि हाल के कुछ दिनों में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कई मुलाकातें की हैं। राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चे में करीब एक दर्जन छोटी-बड़ी पार्टियां हैं। अगर इसमें शिवपाल सिंह यादव और ओवैसी भी जुड़ जाते हैं तो यह मोर्चा अगले चुनाव में कोई उलटफेर कर सकता है और इसका सबसे ज्यादा नुकसान सपा को ही उठाना पड़ सकता है।