क्या भरसर-हल्दी रिंग बंधा ख्याली पुलाव था!

दुबहर (बलिया)। जैसे जैसे गंगा नदी के जल स्तर में वृद्धि हो रही है. वैसे-वैसे नदी किनारे बसे गांवों के लोगों की धड़कनें तेज होती जा रही हैं. आलम यह है कि कई बार बाढ़ की विभीषिका में अपना सब कुछ गंवा चुके गंगा के तीर पर बसे लोगों में जून जुलाई के महीने में हमेशा भय बना रहता है. बरसों की बनाई हुई गृहस्थी कुछ ही दिनों में बाढ़ के चलते तबाह हो जाती है. गंगा के किनारे बसे लोग हमेशा जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के तरफ टकटकी लगाए बैठे रहते हैं कि कभी तो गंगा की बाढ़ से मुक्ति पाने के लिए कुछ ठोस पहल की जाएगी, लेकिन चुनाव के समय लंबे-चौड़े वादे करने वाले नेता चुनाव जीतने के बाद बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हजारों लाखों लोगों की समस्याओं को भूल जाते हैं.

बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि जिस प्रकार कदम चौराहे से धरनीपुर मोड़ तक रिंग बंधा बनाकर दर्जनों गांवों को बाढ़ की विभीषिका से बचाया गया. उसी प्रकार भरसर से लेकर हल्दी और उसके आगे तक के गांवों को भी रिंग बंधा बनाकर बाढ़ की विभीषिका से बचाया जा सकता है. भरसर से लेकर हल्दी तक रिंग बंधा बनाने का काम एक बार शुरू ही किया गया था. उसके लिए किसानों को मुआवजा भी दे दिया गया. कहीं-कहीं बंधे की भराई भी हुई, लेकिन कई दशक बीत जाने के बाद आज तक उस बंधे का निर्माण कार्य क्यों नहीं हुआ, यह समझ से परे है. बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हजारों लोगों का कहना है कि अगर समय रहते उसी बंधे को उच्चीकृत करके बना दिया जाए तो सैकड़ों गांवों की रक्षा की जा सकती है. बाढ़ में फंसे लोगों ने जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करते हुए बाढ़ की समस्या से निजात के लिए ठोस पहल करने की मांग की.

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