कल तक थे अनजाने, आज हैं जान से प्यारे

हर्ष वाजपेयी बसपा में थे, आज ताल ठोक रहे भाजपा से, नन्दी कांग्रेस में थे, अब भाजपा का कर रहे हैं गुणगान. दल हो या नेता सर्वोपरि है सिर्फ अपना हित

इलाहाबाद से आलोक श्रीवास्तव

कोई माने या ना माने, जो कल तक थे अनजाने, वो आज हमें जान से भी प्यारे हो गए. कुछ इसी तर्ज पर आज की भारतीय राजनीति है और नेताओं का भी सिद्धांत और आदर्श से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है. दल और नेता का सिर्फ एक ही रिश्ता है, अपना हित. तभी तो जो कल तक एक दूसरे को पानी पी-पी कर कोसते थे, वही आज बड़ाई करते हुए अघा रहे हैं, जुबान थक नहीं रहीं हैं.

दिल भले न मिले, गले से जरूर मिल रहे हैं. आइये हम बात करते हैं इलाहाबाद के नेताओं की जो कभी दुश्मन थे आज मित्र बने हुए हैं.  शहर उत्तरी से हर्ष वाजपेयी ने 2012 का विधानसभा चुनाव बसपा से लड़ा था. मायावती के कसीदे पढ़े थे, भाजपा को सांप्रदायिक कहा था. आज भाजपा के साथ हैं और कमल का गुणगान कर रहे हैं, भाजपा को भी इनमें साम्प्रदायिकता नजर नहीं आ रही है.

शहर दक्षिणी से भाजपा से नन्द गोपाल गुप्ता नन्दी मैदान में हैं. बसपा सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. पिछला चुनाव हाथी पर चढ़ कर लड़ा पर हार गए. पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण मायावती ने इन्हें दल से बाहर कर दिया. फिर इन्होंने कांग्रेस का दामन थामा. 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. इस दौरान राहुल और प्रियंका गांधी के साथ रैलियां निकालीं. कांग्रेस की बड़ाई की और बसपा व भाजपा को जमकर कोसा, आज भाजपा के साथ हैं. कभी नन्दी और पिछले चुनाव में फूलपुर से प्रत्याशी रहे हाजी मासूक खान साथ-साथ कांग्रेस में थे. आज शहर दक्षिणी से एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. नन्दी भाजपा से तो हाजी मासूक बसपा से.

बारा विधानसभा क्षेत्र से डॉ. अजय भारती ने 2012 का चुनाव सपा से लड़ा था. अब भाजपा से मैदान में हैं. प्रवीण पटेल ने पिछला चुनाव फूलपुर से लड़ा था और हाथी पर सवार थे. वर्तमान चुनाव में वह कमल का फूल खिला रहे हैं. फाफामऊ से बीजेपी उम्मीदवार विक्रमजीत मौर्य कभी कांग्रेस में थे, फिर सपा में गए, आज कमल का गुणगान कर रहे हैं. राम कृपाल पटेल कभी सीपीएम नेता थे, आज कांग्रेस से कोरांव विधानसभा क्षेत्र से मैदान में हैं.

रीता बहुगुणा जोशी और उनके बड़े भाई विजय बहुगुणा भले ही इलाहाबाद से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन रहने वाले इलाहाबाद के हैं, इसलिए इनका जिक्र हुए बिना कहानी अधूरी रह जाती है. रीता बहुगुणा कभी सपा में थीं, फिर कांग्रेस ज्वाइन की. लखनऊ कैंट से विधायक बनीं. वह कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष भी रहीं. कांग्रेस ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी से नवाजा, लेकिन आज वह भाजपा के गेरुआ रंग में रंग गईं हैं और लखनऊ कैंट से ही भाजपा उम्मीदवार हैं. विजय बहुगुणा उत्तराखण्ड के कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. उन्हें हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद उन्होंने बगावत कर दी और कई विधायकों के साथ उसी भाजपा के शरण में गए, जिसके खिलाफ चुनाव लड़े थे और मुख्यमंत्री बने थे. कुछ दिन पहले इलाहाबाद के भाजपा कार्यकर्ताओं ने दलबदलुओं को टिकट देने और मैदान में जाकर काम करने वाले भाजपाजनों को नजरअंदाज करने पर जमकर विरोध जताया था, लेकिन इनकी एक भी न सुनी गयी.

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