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रविशंकर पांडेय, बांसडीह, बलिया
बांसडीह, बलिया. बांसडीह तहसील क्षेत्र के भोजपुरवा का टिकुलिया मौजा का यह इलाका वीरान हो गया है। लगभग 300 परिवारों वाला गांव जहां करीब 1200 की आबादी थी वहां अब लोगों के स्थान पर सरयू की लहरें हिचकोले ले रही है। पानी में बीचों बीच बचा है तो पीपल बरगद का पेड़।
सरयू के समीपवर्ती टिकुलिया के लोग या तो कहीं रिश्तेदारों के घर या फिर अस्थाई सुल्तानपुर में बने रैनबसेरा में शरण लिए है। जुलाई महीने से ही सरयू के तेज कटान की वजह से ग्रामीणों का पलायन शुरू हो गया था। ग्रामीणों ने कटान का वेग तेज होते देख अपने लिये सुरक्षित स्थान ढूढ़ना शुरू कर दिया था। कुछ तो पहले से अन्यत्र जमीन ले लिये थे, वहीं आधे से अधिक लोग आर्थिक तंगी से रैन बसेरे में अभी तक शरण लिये है।
रैन बसेरे ( स्कूल में ) शरण लिये लोगो ने कहा कि ऐसा दिन दुश्मन को भी न देखने को मिले,सब कुछ सरयू ने अपनी आगोश में ले ही लिया। घर,अस्पताल के बजाय स्कूल की छत पर दो महिलाएं मां बनीं। स्कूल में बंजारों की तरह गुजर बसर हो रहा था, लेकिन अब वहां से हटाने की कवायद शुरू है क्योंकि स्कूल खोला जाना है।
मनियर ब्लॉक के सुल्तानपुर गांव स्थित विद्यालय में गुजर बसर कर रहे लोगों का दर्द सुनकर हर कोई चकित है। एक माह का गोद में लिये महिलाएं बात करते करते फफक कर रोने लगीं। उसी बीच रिश्तेदार मिठाई ,सामान लेकर मिलने आ गए। महिलाओं का कहना है कि आज अपना घर रहता तब ये लोग अपने घर आए होते। स्कूल में हम लोग रह रहे हैं अच्छा नहीं लग रहा है। हम लोग आखिर कहां जाएं। स्कूल प्रबंधन की ओर से बोला जा रहा है कि आप लोग खाली करिए। कुछ समझ नहीं आ रहा है कि इस स्थिति में हम लोग क्या करें।
दो महिलाओं के बच्चे स्कूल में ही पैदा हुए
कटान पीड़ित कविता व सुनैना देवी ने बताया कि हम लोग प्रेग्नेंट थीं। रात हो चुकी थी। आगे पीछे कोई नही था। 25 दिन पहले अचानक दर्द उठा तो कोई नहीं था। स्कूल की छत ही हम लोगो के लिये अस्पताल बन गया। सभी यहां रह रही महिलाओं ने मिलकर हम लोगो को सहारा दिया। बच्चे पैदा हुए। छत ही अस्पताल बन गया।
दुर्घटना में दिव्यांग हुए, कटान में बाकी सब भी खत्म हो गया
विद्यालय में शरण लिए एक दिव्यांग का कहना है कि जिंदगी पहाड़ की तरह लग रही है। पत्नी, मां सहित 6 परिवारीजन हैं। मै ही कमाने वाला था। बाइक से दुर्घटना हुई तब से दिव्यांग हो गया हूं। मैं दूसरों को सहारा देता था, अब मैं खुद बेसहारा हो चुका हूं। सरयू नदी ने ऐसा रूप पकड़ा कि सब स्वाहा हो गया। कहां परिवार के जाएं कुछ समझ नहीं आ रहा।
ऐसा जीवन में पहली बार हुआ है, रोते हुए बोली बुजुर्ग महिला कलावती ने सुनाई आपबीती
70 वर्षीय कलावती ने कहा कि ऐसा दिन जीवन में देखने को नहीं मिला था। अपना दर्द किसको , किससे कहने जाएं,कोई नहीं सुनेगा। सरकार एक सुन सकती है, पर वो भी हम लोगो को नही पूछ रही।बुजुर्ग महिला ने कहा कि पहली बार घर ,खेत,सब नदी में चला गया, जिसकी वजह से विद्यालय में शरण लिया गया है। आखिर अब किसके यहां जाएं,समझ से परे है।खाने के भी लाले पड़ गए हैं।
यह नौबत क्यों आई , सरयू नदी का जलस्तर जुलाई से ही था बढ़ा
सरकार ने भले ही कई जिलों में बाढ़ प्रभावित और उपजाऊ भूमि कटान के लोगों को मुआवजा देने की घोषणा की है लेकिन बांसडीह तहसील के भोजपुरवा ,टिकुलिया गांव के लोग आज भी विद्यालय में शरण लिये हैं और उन्हें मदद का इंतजार है।
जुलाई माह में जब सरयू नदी ने विकराल रूप लिया था, उपजाऊ जमीन का कटान होने लगा था..भोजपुरवा, टिकुलिया गांव के समीप नदी पहुंच रही,तभी बांसडीह विधानसभा के पूर्व विधायक व नेता प्रतिपक्ष रामगोविन्द चौधरी ने मुख्यमंत्री सहित अधिकारियों को पत्र लिखकर कटान से लोगो को बचाने के लिये जरूरी कदम उठाने के लिये लिखा था लेकिन कोई कदम नही उठा।
फिर बीजेपी विधायक केतकी सिंह पहुंचकर ,जिला प्रशासन को बताई थीं। वहीं एडीएम उदय प्रताप सिंह, एसडीएम, तहसीलदार सहित अधिकारी पहुंच कर जायज लिये थे। उसके अगले दिन सपा सांसद रमाशंकर राजभर पहुंचे थे। उसके बाद डीएम प्रवीण कुमार लक्षकार मौके पर पहुंचे थे। सरयू नदी ने भोजपुरवा, टिकुलिया गांव को अपने आगोश में ले लिया। अपने अपने आशियानों को उजाड़ कर लोग जैसे तैसे इधर उधर विस्थापित हुए। सांसद रमाशंकर राजभर ने संसद में आवाज उठाया था ताकि मुआवजा मिल जाए।
चिन्हित कर कुछ लोगों को दिया गया मुआवजा
सरयू की कटान से टिकुलिया के विस्थापित लोग उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सुल्तानपुर में लगभग 30 से 40 परिवार शरण लिए हुए हैं। स्कूल में कुल 13 कमरे है। उसमें 11 कमरों में बाढ़ कटान प्रभावित लोग रह रहे हैं। उन्हें स्कूल के प्रधानाचार्य संतोष पाण्डेय ने उपजिलाधिकारी बाँसडीह को पत्र के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई बाधित होने से उन्हें अन्यत्र अपने रहने के लिये पत्र जारी कर गुहार लगाया है।
कारण कि बच्चों की संख्या 1200 है, जिसमे लगभग 600 छात्र व 600 छात्राएं है। उनकी तीन महीने से पढ़ाई बाधित हो रही हैं। बच्चे बाहर बैठकर नीचे टाटपट्टी पर बैठकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उनके कमरे कटान प्रभावित लोगों के रहने के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं। उनके बेंच भी उन लोगों ने सोने के लिये प्रयोग में ले लिया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने चिन्हित कुछ लोग को बांसडीह इलाका में मुआवजा जरूर दिया लेकिन गिने चुने परिवार बच गए हैं जिनके लिए आज संकट बना हुआ है। सुल्तानपुर स्कूल परिसर में बलिया लाइव टीम से लोगों ने जब अपनी बात रखी तो रौंगटे खड़े हो जा रहे थे। इन पीड़ितों का दर्द सरकार कब तक सुनती है ,यह समय ही बताएगा।
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