बलिया। राष्ट्रभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर नगर की साहित्यिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था अपरिमिता के बैनर तले सतनीसराय कार्यालय पर गोष्ठी आयोजित की गई. कार्यक्रम में साहित्य एवं संगीत से जुड़े अनेक लब्ध प्रतिष्ठित एवं नवोदित साहित्यकारों, वक्ताओं, गायकों ने अपने अपने ढंग से राष्ट्रभाषा हिंदी को लेकर अपने उद्गार व्यक्त किए.
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गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिंतक डॉ. जनार्दन राय ने महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए कहा कि जिस देश की अपनी राजभाषा न हो वह देश गूंगा होता है. कहा कि 14 सितंबर सन् 1949 को जिस हिंदी को राजभाषा बनाने का संकल्प हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने लिया था, वह इतने बरसों बाद भी अपने हक हकूक के लिए संघर्षरत है.
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विद्वान वक्ता अशोक पत्रकार ने हिंदी को राजभाषा बनाने की इतिहास पर प्रकाश डाला. बताया कि सर्वप्रथम सन 1882 में भारतेंदु बाबू ने अंग्रेजों के समय हिंदी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा था. उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि हिंदी के प्रबल पक्षधर नेताओं में से अधिकांश का सबंध और हिंदी भाषी प्रदेशों से था. व्यंगकार भोला प्रसाद आग्नेय ने इस बात पर आक्रोश व्यक्त किया कि राजनेताओं की असमंजस व कमजोर इच्छाशक्ति के चलते ही हिंदी को रूखी सूखी और अंग्रेजी को खीर नसीब होती रही है.
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प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. अमलदार नीहार ने हिंदी के लिए कहा कि एक दिवस क्या जीवन भर की अर्पित सांस हमारी है…. उन्होंने अपनी भावनाओं का इजहार किया. शिक्षक व कवि शशि प्रेम देव ने कहा कि अपरिमिता के इस आयोजन में हिंदी के प्रचार-प्रसार में सहायक साहित्य संगीत एवं सिनेमा इन तीनों धाराओं का संगम देखने को मिल रहा है. गोष्ठी का आगाज पंडित राजकुमार मिश्र की सरस्वती वंदना से हुआ.
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संगीताचार्य विक्की पांडेय ने स्वागत गीत के माध्यम से तथा संस्था की सचिव लोकप्रिय गायिका सुनीता पाठक, शैलेंद्र मिश्र, मोहम्मद इसहाक रजा तथा मास्टर शिवम् ने अपने सुरीले गायन से गोष्ठी को बहुरंगी बना दिया. गीतकार शिवजी पांडेय रसराज तथा शायर शंकर शरण ने अपनी स्तरीय रचनाओं की बानगी पेश की. कार्यक्रम को सफल बनाने में वरिष्ठ रंगकर्मी विवेकानंद सिंह, सीयल शर्मा, दीपक तिवारी, चंदन गुप्ता, नेहा पाठक, नीतू, प्रियंका तथा साहिल आदि ने सक्रिय सहयोग दिया. संचालन साहित्य सेवी डॉ. राजेंद्र भारती तथा आभार प्रदर्शन सुनीता पाठक ने किया.
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