उहवें जे बाड़ी छठि मईया आदित रिझबे जरूर

जयप्रकाशनगर (बलिया) से लवकुश सिंह

LAVKUSH_SINGHलोक आस्था का महापर्व छठ के साथ हर्षोल्लास के अलावा कई रहस्यों को भी समेटे हुए है. अध्यात्म और योग के मेल का उदाहरण भी यह पर्व है. छठ का एक अर्थ छठ चरणों का हठयोग होता है. छठ व्रती चार दिनों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए रहते हैं. पूजा में भी काफी सावधानी बरती जाती है. हठयोग में अपने आप को कष्ट देकर ईश्वर को प्रसन्न करने की बात आती है.

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जयप्रकाशनगर के रेगुलेटर घाट (फाईल फोटो)

सूर्योपासना इस पर्व का सीधा मतलब सूर्य से अपने लिए छह ऊर्जा ग्रहण करना है. सबसे प्राचीन वेद ऋगवेद में भी छठ का जिक्र आता है. वैदिक काल में ऋषि भोजन से दूर रह कर सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करने लिए यह व्रत करते थे. छठ का महात्म्य महाभारत काल में भी मिलता है. कहा जाता है कि पांडवों के वनवास के समय द्रौपदी ने भी सूर्य की उपासना की थी. द्रौपदी के अलावा कर्ण भी छठ व्रत करते थे.

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मार्कण्डेय पुराण में भी आता है जिक्र

मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है और इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है. शिशु के जन्म के छह दिनों के बाद भी इन्हीं देवी की पूजा करके बच्चे के स्वस्थ, सफल और दीर्घ आयु की प्रार्थना की जाती है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी मिलता है, जिनकी नवरात्र की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.

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छठ में विदेशी उत्पाद की नहीं दरकार

छठ की पवित्रता और संस्कार पर भूमंडलीकरण का असर नहीं पड़ा है. दिवाली में जहां चाइनीज बल्बों व पटाखों की धूम रहती है, छठ में परंपरा व पवित्रता को महत्व दिया जाता है. मिट्टी के चूल्हे, आम की लकड़ी,जांत में पीसे गए गेहूं का आटा, गुड़ और चावल के अयपन का कोई विकल्प नहीं चुनता. शहर में अब जात नहीं के बराबर है. हर मोहल्ले में आटा चक्की की धुलाई कर छठ प्रसाद के लिए गेहूं की पीसाई की जाती है. पुण्य कमाने के लिए मिल मालिक प्रसाद का गेहूं मुफ्त पीसते हैं.

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पुण्य प्राप्ति के कई तरीके

जिनके यहां छठ नहीं होता है, वे भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पुण्य प्राप्ति का प्रयास करते हैं. घर में फला कद्दू नहाय-खाय के दिन व्रती के घर पहुंचाते हैं. खेत में उपजी ईख, अमरूद, घाघर या अन्य ऋतु फल छठ व्रत में बांटते हैं. आर्थिक रूप से सक्षम लोग छठ के लिए सूप, नारियल, गेहूं, गुड़, दूध व अन्य पूजन सामग्री व्रतियों में बांटकर पुण्य प्राप्ति की कामना करते हैं.

कुछ न सही तो दातुन ही सही

छठ में सामाजिक भागीदारी खूब दिखती है. व्रतियों के लिए जिसे जो बन पड़ता है, करता है. कुछ नहीं बन सका तो व्रती के लिए आम के दातुन का ही इंतजाम कर दिया. इस दौरान पूजा समितियां व मोहल्ले के लोग घाट की तरफ जाने वाली सड़कों की खुद सफाई करते हैं. सड़कों को धोया जाता है. जगह-जगह अर्घ्य के लिए दूध का इंतजाम रहता है. सुबह के अर्घ्य के बाद घाट से लौटते समय जगह-जगह व्रतियों के लिए चाय का इंतजाम किया जाता है.

हर फल भगवान के नाम

छठ व्रत के दौरान पवित्रता और संस्कार की झलक हर घर-आंगन में दिखती है. मान्यता है कि छठ व्रत के दौरान की हर फल-सब्जी भगवान सूर्य की देन है. पहला हक सूर्य देव और उनके उपासकों का है. प्रथम अर्घ्य के दिन लोग बाजार से खरीद कर फल तक सेवन नहीं करते. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन का फल भगवान सूर्य देव के लिए है. उनकी पूजा संपन्न होने बाद व्रतियों के पारण तक फल के सेवन से परहेज करते हैं.

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व्रतियों की सेवा के और भी माध्यम

घाटों पर व्रतियों के कपड़े धोकर लोग सेवा समर्पित करते हैं. पूजा कर लौटते व्रतियों को नींबू पानी, शर्बत, चाय अथवा अन्य तरह की सेवाएं देने वालों की कतार लगी रहती है. अपने घर का दूध अर्घ्य में उपयोग हो इसके लिए कतार लगाकर व्रतियों को रास्ते भर बांटते हैं. धूप, दीप, घी अपनी शक्ति के अनुसार रास्ते में बांटने वाले कतार से मिलते हैं.

छठ महापर्व का चार दिवसीय कार्यक्रम

नहाय-खाए :  4 नवंबर (शुक्रवार)

खरना-लोहड़ : 5 नवंबर (शनिवार)

सायंकालीन अर्घ्य :  6 नवंबर (रविवार)

प्रात:कालीन अर्घ्य : 7 नवंबर (सोमवार)

सायंकालीन अर्घ्य का समय :- शाम 5.10 बजे

प्रात:कालीन अर्घ्य का समय : प्रात: 6.13 बजे

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