दुबहर, बलिया. स्थानीय थाना क्षेत्र अंतर्गत शिवपुर दियर नई बस्ती 82 की स्थाई निवासी सृष्टि सिंह पुत्री प्रमोद सिंह ने आज संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 180 वीं रैंक प्राप्त कर पूरे क्षेत्र के साथ जनपद का नाम ऊंचा किया. रिजल्ट आते ही पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई.
प्रमोद कुमार सिंह एवं मीना सिंह की कुल 2 पुत्रियों में सृष्टि सिंह छोटी है अपनी प्रारंभिक शिक्षा पिता प्रमोद कुमार सिंह भारतीय रेलवे को-ऑपरेटिव बैंक में ब्रांच मैनेजर के रूप में बरेली में पोस्टेड है सृष्टि बरेली में ही रहकर केंद्रीय विद्यालय से हाई स्कूल सन् 2008 में 85% एवं इंटर 2010 में 82 प्रतिशत के साथ उच्च शिक्षा बीएससी कंप्यूटर साइंस एसआरएम चेन्नई से गोल्ड मेडल के साथ सन् 2013 में पास की. उसी समय से आईएएस एवं आईपीएस बनने की मन में भावना भर गई थी. सृष्टि ने बताया कि जब मैं 9वी में पढ़ रही थी तभी मेरे पिता ने मुझे इस ओर प्रेरित किए. यह अंतिम एवं छठवां प्रयास था लेकिन हिम्मत नहीं हारी इसके पूर्व दो बार इंटरव्यू तक जाकर बाहर होना पड़ा किंतु हार ना मानने की कसम खा रखी थी. पूछे जाने पर सृष्टि सिंह ने बताया की मनुष्य को लक्ष्य रखकर और अंतिम समय तक संघर्ष करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि बीएससी कंप्यूटर साइंस में जब मैंने गोल्ड मेडल प्राप्त किया था. वर्तमान प्रधानमंत्री और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जी के हाथों मुझे मेडल मिला था.
मैं जानती थी की एक दिन मुझे भी सफलता मिलेगी. शिवपुर दियर नई बस्ती 82 में चाचा अर्जुन सिंह एवं रिंकी सिंह चाची ने खुशी का इजहार करते हुए मिठाइयां बांटी. वहीं 74 वर्षीय दादा रामचंद्र सिंह फूले नहीं समा रहे हैं.
यूपीएससी की परीक्षा में 180 वी रैंक प्राप्त करने वाली सृष्टि सिंह से दूरभाष से बात होने के बाद उन्होंने बताया कि मुझे नौवीं की पढ़ाई के दौरान ही मेरे पिता प्रमोद कुमार सिंह उर्फ पप्पू सिंह ने प्रेरणा देकर प्रेरित किया की आईएएस, आईपीएस बनो. मैं बीएससी कंप्यूटर साइंस से करने के बाद तैयारी में लग गई. मुझे गोल्ड मेडल मिला. उन दिनों प्रधानमंत्री जी मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए मुझे पुरस्कृत किया था. मुझे प्रेरणा मिली. इस बीच में 5 बार परीक्षा में बैठी दो बार इंटरव्यू तक आकर छठ गई. लेकिन हमने जीवन में हार न मानने की कसम खा रखी थी. मैंने प्रधानमंत्री जी के जीवन से ही शिक्षा ली और इस अंतिम प्रयास को मैं उन्हें समर्पित कर देना चाह रही थी. इस बीच मेरे माता-पिता मुझे प्रेरित कर रहे थे. मैंने कठिन तप के रूप में अध्ययन करने के समय को और केंद्रित कर दिया. मैं पूर्ण रूप से संतुष्ट थी, कि इस बार में सफल हो जाऊंगी. पिछली विफलता ने ही मुझे सफलता की तरफ प्रेरित किया.
(बलिया से केके पाठक की रिपोर्ट)