जब भी कभी कोई खास मौका आता है तो उससे जुड़ी चंद बातें जेहन में कौंध जाती हैं. अब देखिये, हर साल की तरह इस बार भी हिन्दी दिवस आ गया.’हिन्दी की सेवा’ के लिए कई लोग सम्मानित भी किये जायेंगे. इसी बात पर एक वाकया ख्याल आ गया.
हुआ यह कि हिन्दी दिवस पर सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. आमंत्रित लोग पहुंचे. उनमे वे भी शामिल थे जिनको सम्मानित किया जाना था.मुख्य अतिथि के सम्बोधन के अतिरिक्त अन्य अतिथियों ने भी हिन्दी दिवस पर वृहत भाषण दिया. अपने सेवा भाव का बखान करना नहीं भूले.
समारोह मे नियत समय पर अतिथियों को सम्मानित और पुरस्कृत किया गया. इस बीच आयोजक का ध्यान उस सूची पर गया जिसपर अतिथियों के हस्ताक्षर थे. यह देखते ही वह चौंक गये. अरे, यह क्या? उन्होंने झट से माइक संभाली.
आयोजक ने कहा कि हमलोग हिन्दी दिवस पर सभी काम हिन्दी मे करने की शपथ लेते हैं. यहां आये सभी अतिथियों ने उपस्थिति सूची में हस्ताक्षर तो अंग्रेजी में कर रखे हैं. सभी सम्मानित जनों से आग्रह है कि वे हिन्दी में हस्ताक्षर करें अन्यथा पुरस्कार-सम्मान वापस ले लिये जायेंगे.
दूसरी भाषाएं जानना तो अच्छी बात है मगर अपनी भाषा की तौहीन कैसे अच्छी बात हो सकती है. मातृभाषा का भी एक विशेष स्थान होता है. अगर कोई अंग्रेजी या दूसरी भाषा के पक्षधर हैं तो इससे भला कोई कैसे रोक सकता है. तब उन्हें पूरी तरह उसमें ही रच-बस जाना चाहिए.
बहरहाल, यही कहा जा सकता है कि अपनी भाषा की कीमत पर कोई अन्य भाषा स्वीकार नहीं हो सकती.