
सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन
भक्ति के आलम में डूब कथा श्रवण किए श्रद्धालु
बलिया। टाउनहाल मैदान में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन वृंदावन के कथा व्यास पं. राधेश्याम जी शास्त्री ने कहा कि भागवत महापुराण भगवान की वाङ्गमय( शब्दमय ) मूर्ति है. शिव-पार्वती के विवाह की चर्चा के बाद बताया कि शिव का परिवार समता का परिवार है. ध्रुव चरित्र में बताया कि 5 वर्ष के बालक ध्रुव ने अपनी भक्ति से प्रभु को प्राप्त कर लिया. भक्ति के लिए उम्र कोई बाधा नहीं है. भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए. क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है. उसे जैसा चाहे वैसा बनाया जा सकता है.
” प्रेम से प्रकट होय मैं जाना ” प्रभु चरित्र की कथा में बताया कि गृहस्थ का जीवन कैसा रहे. धर्म, कर्म और प्रभु को भजते हुए प्रभु प्राप्ति की जा सकती है. पंचम स्कंध में भरत चरित्र की कथा में बताया कि भरत महाराज का मन वन में हिरण में लगा रहा, दूसरे जन्म हिरण बनाना पड़ा.
” अन्ते या मति सा गति ” यथार्थ जीवन के अंत में जगत से मन को हटा कर जगदीश में लगावे.
भूगोल खगोल की चर्चा के बाद मुख्यतः 28 प्रकार के नरकों की बात बताइ. जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है. ” कर्म प्रधान विश्व रचि राखा जो जस करहिं सो तस फलचाखा ” ‘ मेरे मालिक के दरबार में सब लोगों का खाता जो भी जैसी करनी करता वैसे फल पाता ‘ नरक से निवृत का उपाय पूछने पर षस्ट स्कंध में प्रभु नाम की महिमा नारायण नाम की महिमा बताई. एक पापी अजामिल पंडित के मरते समय अपने बेटे नारायण का नाम बस लिया और श्रीमन्नारायण प्रसन्न हुए. शास्त्री जी ने बताया कि राम से बड़ा राम का नाम “सेतु चढ़ श्री राम गए और लांध गये हनुमान” कथा क्रम में सप्तम स्कंध में भक्त प्रहलाद की कथा सुनाई की एक छोटे से बालक ने प्रभु को श्री नरसिंह भगवान को पत्थर के खंभे से प्रकट कर दिया.
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प्रह्लाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस खंभे में भी है, और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्यकश्यप का वध कर प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की.
कथा के समापन पर भक्त प्रहलाद व नरसिंह भगवान की सुंदर झांकी का मंचन हुआ. जिसे देख श्रोतागण जयकारा लगाते रहे. कथा के आयोजन में स्वंयसेवक संघ व गायत्री पीठ के बहनें भक्तिमन से सेवार्थ भाव मे उपस्थित रहीं.