पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की संरक्षक तथा जलीय संसाधन की स्रोत हैं आर्द्रभूमियाँ

रामगढ़(बलिया)। विश्व आर्द्रभूमि संरक्षण दिवस पर अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा में ” वर्तमान संदर्भ में आर्दभूमियों की उपादेयता” नामक विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसकी अध्यक्षता महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डा० गणेश कुमार पाठक ने किया. जबकि गोष्ठी का संचालन भूगोल विभाग के असिस्टेण्ट प्रो० शैलेन्द्रकुमार राय ने किया.

गोष्ठी को संबोधित करते हुए भूगोल विभाग के असिस्टेण्ट प्रो० डा० सुनीलकुमार ओझा ने कहा कि आर्द्र भूमियाँ हमारे लिए सदैव से उपयोगी रही हैं. किन्तु वर्तमान समय में इनकी उपादेयता और बढ़ गयी है. खास तौर से जलीय पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी असंतुलन के दुष्प्रभाव से ये आर्द्र भूमियाँ ही हमें बचा सकती हैं. शैलेन्द्र कुमार राय ने विषय प्रवर्तन करते हूए कहा आर्द्र भूमियाँ हमारे जीवन के लिए वह सब कुछ प्रदान करती हैं, जिन्हें हमें आवश्यकता होती है.

आर्द्रभूमि क्षेत्रों के लिए तो आर्द्रभूमियाँ जीवन रेखा हैं. ये न केवल हमें जल प्रदान करती हैं, बल्कि जलस्रोतों को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. हमें खाद्यान्न भी उपलब्ध कराती हैं, साथ ही साथ मानव जीवन के सभी संस्कार इन आर्द्रभूमियों के किनारे ही सम्पन्न होते है. यही कारण है कि मानव जीवन से इनका गहरा नाता है.

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE         

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डा० गणेश कुमार पाठक ने आर्दभूमियों की उपादेयता पर विस्तृत प्रकाश डाला. उन्होंने कहाकि आर्द्रभूमि वह भूमि होती है जो जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों मे, जहाँ जल का तल प्रायः जमीन की सतह पर अथवा जमीन की सतह के नीचे होती है या धरातल उथले जलके द्वारा आच्छादित रहता है, उसे आर्द्रभूमि कहा जाता है. जो जलीय पारिस्धितिकी प्रणालियों के मध्य संक्रमित होती है. आर्द्रभूमि वह भूमि होती है जहाँ वर्ष में 8 माह जल भरा रहता है. इस प्रकार जल से संतृप्त भूभाग को ही आर्द्रभूमि कहा जाता है.
डा० पाठक ने बलिया जनपद की आर्द्रभूमियों का अध्ययन कर यह बताया कि वर्तमान समय में बलिया में कुल 33 आर्द्रभूमि है. जिनमें से सुरहा ताल, दह ताल एवं रेवती दह विशेष महत्व की हैं. बलिया की आर्द्रभूमियाँ इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी तंत्र सुव्यवस्थित रखने, जैव विविधता को बचाए रखने, भूमिगत जल स्तर को कायम रखने एवं नदियों में भी जल के आस्तित्व को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. बलिया जनपद की आर्द्रभूमियों में न केवल जलीय जीव , बल्कि जलीय वनस्पतियाँ, विविध प्रकार के जीव- जंतु एवं विविध प्रकार की रंग- बिरंगी पक्षियाँ पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है. खासतौर से सुरहा ताल में साइबेरिया से आने वाली रंग -बिरंगी पक्षीअपने कलरव के लिए प्रसिद्ध हैं. जो पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं. किन्तु इनका अवैध रूप से शिकार होने के कारण इन पर संकट मँडराने लगा है. इन आर्द्र भूमियों में अनेक प्रकार की की दुर्लभ मछलियाँ भी पायी जाती हैं. साथ ही साथ एक विशेष प्रकार की चावल की प्रजाति जिसे “बोरो” कहा जाता है, किन्तु इसकी खेती भी अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही है. इस धान की यह विशेता है कि जल वृद्धि के साथ साथ इनका पौधा भी बढ़ता जाता है , जिससे इनकी खेती नष्ट नहीं हैती है.
सिंघाड़ा की खेती भी इन आर्द्रभूमियों में की जाती है. मृदा विज्ञानी डा0 अशोक सिंह के अनुसार इनकी तलहटी की मिट्टी अत्यन्त ही उपजाऊ होती है .
डा0 पाठक बताया कि ये आर्द्रभूमियाँ जल पारिस्थितिकी, पादप पारिस्धितिकी, मृदा पारिस्थितिकी एवं जीव पारिस्धितिकी को समृद्ध बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. किन्तु अफसोस इस बात का है कि वर्तमान समय में जलीय कृषि का रीढ़ माने जाने वाली ये आर्द्रभूमियाँ धीरे धीरे समाप्त होती जा रही हैं. जलीय कृषि हेतु सरकार द्वारा कोई प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण जलीय कृषि का भी अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है. आज आवश्यकता इस बात की है कि नीतिगत आधार पर योजना के तहत इनका विकास किया जाय एवं एकीकृत कृषि के रूप में जलीय कृषि का विकास किया जाय तो निश्चित ही ये आर्द्रभूमियाँ न केवल पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की रक्षा करेंगी , बल्कि खाद्यान्न उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी। बड़ी बड़ी आर्द्र भूमियों को नौकायन एवं पर्यटन केंन्द्र के रूपमें भी विकसित किया जा सकता है. इन सबके चलते इस क्षेत्र के लोगों को रोजगार भी प्राप्त होगा एवं इनकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी.
संगोष्ठी में डा0 श्यामबिहारी श्रीवास्तव, ज्ञानेंन्द्र प्रताप सिंह, डा0 भगवान जी चौबे, ओमप्रकाश सिंह, अक्षयलाल ठाकुर, रवीन्द्र कुमार ठाकुर, जगलाल राम, नागेन्द्र कुमार तिवारी सहित छात्र छात्राएं उपस्थित रहे.

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE