बैरिया के कुल दुग्ध उत्पादन के 70 फ़ीसदी हिस्से का खपत बिहार में

संकीर्तन नगर आश्रम (बलिया) से वीरेंद्र नाथ मिश्र
बैरिया (बलिया) से वीरेंद्र नाथ मिश्र

बैरिया क्षेत्र के कुल दुग्ध उत्पादन का 70 फ़ीसदी हिस्सा बिहार में खपत होता है. उत्तर प्रदेश के डेयरी की व्यवस्था बैरिया क्षेत्र के दुग्ध उत्पादकों को रास नहीं आती. भुगतान में अनियमितता के चलते यहां के दुग्ध उत्पादक बिहार के डेयरी के लिए अपना दूध भेजते हैं.

बता दें कि गंगा और घाघरा नदी के दोआब में बसे से बैरिया विधानसभा क्षेत्र के किसान और खेतीहर मजदूरों के महत्वपूर्ण नकद आय का पशुपालन और दुग्ध उत्पादन प्रमुख जीविका का साधन है. बैरिया क्षेत्र में प्रतिदिन लगभग एक लाख लीटर दूध का उत्पादन होता है. इसका 70 फ़ीसदी हिस्सा पिछले तीन-चार वर्षों से पड़ोसी राज्य बिहार में जाता है. यद्यपि अपने उत्तर प्रदेश में भी तमाम डेयरी हैं. लेकिन दुग्ध उत्पादक उसमें अव्यवस्था बताते हैं. दुग्ध उत्पादकों की माने तो यहां के डेयरी के कर्मचारी मनमानी करते है. पशुपालकों के दूध का भुगतान समय पर नहीं करते. रेट तो अच्छा है, लेकिन भुगतान में बहुत लापरवाही है. ऐसे में बिहार की सुधा डेयरी यहां अपना पांव जमा चुकी है.

दूध कलेक्शन सेंटर जगदेवा के संचालक अखिलेश यादव का कहना है कि सुधा कंपनी ने बैरिया विधानसभा क्षेत्र में जगदेवा, सावन छपरा, सूर्यभानपुर, भगवानपुर, लच्छू टोला, वाजिदपुर, रामनगर, गोपाल नगर सहित 5 दर्जन स्थानों पर अपना दूध कलेक्शन सेंटर बनाया है. वहां सुबह 7 बजे से 9 बजे के बीच और शाम 5:30 बजे से 7:00 के बीच गाड़ी आती है और दूध ले कर चली जाती है. भुगतान के बाबत बताए कि 10 दिन पर बैंक खाते में पेमेंट आ जाता है.

अखिलेश यादव ने बताया कि प्रत्येक दूध कलेक्शन सेंटर पर कंपनी ने लेक्टोमीटर तथा इको एनालाइजर रख दिया गया है. जिससे दूध की जांच हो जाती है. आम तौर पर गाय का दूध फैट के हिसाब से 25 से 35 रुपये प्रति लीटर और भैंस का दूध 35 से 60 रुपये तक प्रति लीटर की दर से बिहार की डेयरी कंपनी खरीदती है. भुगतान भी समय से कर देती है तथा साल में एक बार बोनस भी मिलता है. तीन-चार साल के बीच में कभी कोई गड़बड़ी नहीं आई.

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE         

पूर्व जिला पंचायत सदस्य और सपा नेता ओम प्रकाश उर्फ लालू यादव भी दुग्ध उत्पादन का कारोबार करते हैं. उनका कहना है कि अपने यहां दुग्ध उत्पादन किसानों के लिए कागजी तौर पर तो बहुत सी योजनाएं हैं, लेकिन धरातल पर वह योजनाएं नहीं दिखती. बैंक हो या फिर कृषि विभाग, पशुपालन विभाग दौड़ते दौड़ते पशुपालक परेशान हो जाते हैं. फिर सबसे बड़ी बात यहां यह है कि पशुपालन में कृषि मजदूर ज्यादा सक्रिय हैं. उनके पास अपनी कोई जमीन नहीं है. ऐसे में किसान क्रेडिट कार्ड और अन्य बैंक संबंधी योजनाओं का लाभ उन्हें मिल ही नहीं पाता.

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE