अगर मेले न लगते तो बलेस्सर चच्चा के बलिया बीचे बलमा भी नहीं हेराते….क्यों

मेले और त्योहार एक-दूसरे से मिलने के अवसर होते है. प्राचीन समय में, जब संचार और परिवहन की कोई ऐसी सुविधाएं नहीं थीं, तो इन मेलों और त्यौहारों ने रिश्तेदारों और दूर दूर भौगोलिक स्थानों पर रहने वालों दोस्तों के साथ मुलाकात जेसे सामाजिक सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इन आयोजनों पीछे धार्मिक महत्व और सामाजिक संदेश जेसे सामाजिक महत्व होते है. हमारे क्षेत्र के अधिकांश त्योहार पौराणिक परंपराओं पर आधारित हैं. प्रस्तुत है मेले की कुछ अलग छटा प्रस्तुत करते बलिया लाइव के रिपोर्ताज –

मेला दिलों का आता है, एक बार, आ के चला जाता है
एसीएम ने माघ मेला में रचाई शादी, मां की इच्छा का मान रखा
मंदिर ही नहीं, मेला भी मशहूर है ब्रह्मपुर का
अयोध्या में 35वें रामायण मेले का शुभारम्भ
खुद के देश में लुप्त हो गया, बापू-जेपी का सर्वोदय
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