

मांझी में सौ साल पुराने रेलवे पुल के बगल में बन रहा नया पुल
जयप्रकाशनगर (बलिया) से लवकुश सिंह
अंग्रेजों के जमाने में बना मांझी रेल पुल सौ साल से भी अधिक पुराना हो चुका है. 1942 के भूकंप में हिल चुके हैं इसके पाए. इसके बावजूद इसके बूढ़े कंधों पर राजधानी समेत दर्जनों रेल गाडिय़ां रोजाना दौड़ लगा रही हैं. इसके समीप ही नए रेल पुल का निर्माण कार्य सात साल पहले शुरू हुआ जरूर, लेकिन पूर्वोत्तर रेलवे के वाराणसी-छपरा रेलखंड पर बकुल्हा-मांझी रेलवे स्टेशनों के बीच घाघरा नदी पर लगभग तीन सौ करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इस पुल के सभी पाए अब तक खड़े नहीं हो सके हैं.

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बता दें कि लागों की मांग के बावजूद इस पुल की स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था,. तब नए पुल के निर्माण को लेकर लोग आवाज बुलंद करने लगे. भारी दबाव के बीच तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने पुराने रेल पुल के बगल में नए पुल के निर्माण की योजना सात साल पूर्व स्वीकृत की थी. इसके लिए धन भी स्वीकृत कर दिया गया था. उसके बाद कतिपय कारणों से यह योजना लटक गई. वर्ष 2012 में केंद्र सरकार ने पुल का निर्माण कार्य शुरू कराया, लेकिन निर्माण कार्यों को दो साल बाद भी अपेक्षित रफ्तार नहीं मिल सकी. पुराने पुल से गुजरते वक्त ट्रेनों की रफ्तार भले ही धीमी हो, इसके बावजूद यात्रियों की जान सांसत में रहती है. मौके का निरीक्षण करने नई दिल्ली से आने वाले वरिष्ठ अधिकारी निर्माण कार्य में तेजी लाने का आश्वासन देते जरूर हैं, लेकिन उसकी रफ्तार बढ़ नहीं पाती और निर्माण कार्य के रुक-रुक कर होने का सिलसिला जारी है. यह पुल कब तक बन कर तैयार होगा, इस मामले में यहां के रेल अधिकारियों से लगायत डीआरएम तक भी स्पष्ट जानकारी नहीं दे पा रहे हैं.
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50 जोड़ी ट्रेनों का होता है परिचालन

यह पुराना रेल पुल अंग्रेजों के जमाने का है. इसके स्थान पर नया रेल पुल अति आवश्यक था, क्योंकि इस रूट से रोजाना 50 जोड़ी ट्रेनों का परिचालन होता है. रेल महकमे को इसके प्रति ज्यादा गंभीर होना चाहिए और कार्य में तेजी लानी चाहिए.
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लगता है अभी करना पड़ेगा काफी इंतजार
मांझी के नए रेल पुल के निमार्ण कार्य शुरू देख लोगों के चेहरे पर संतोष के भाव देखे गए थे, किंतु निर्माण कार्य की अपेक्षित गति न होने के कारण ऐसा लगता है कि लोगों को अभी काफी समय तक इंतजार करना पड़ेगा.
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