जेपी का गांव : जब हो गए कंगाल, तब याद आई सिताबदियारा सुरक्षा बांध

घाघरा कटान के स्थायी निदान की ओर एक बेहतर कदम

यूपी-बिहार दोनों सीमा में 7.625 किमी में सुरक्षा बांध बनाने की तैयारी

130 करोड़ की लागत से तैयार होगा सिताबदियारा सुरक्षा बांध

जयप्रकाशनगर (बलिया) से लवकुश सिंह

वर्ष 2011 से 2016 तक यूपी-बिहार ने मिलकर लगभग 70 करोड़ रुपये घाघरा में कटान रोकने के नाम पर बहा दिए. इसके बावजूद भी गांव घाघरा कटान से सुरक्षित नहीं हो सके. अब तक के आकड़े के मुताबिक यूपी सीमा के इब्राहिमाबाद नौबरार में लगभग 150 एकड़ उपजाऊ भूमि के सांथ-सांथ लगभग 300 से भी अधिक लोगों के घर 2011 से 2015 तक घाघरा में समाहित हो गए, वहीं सिताबदियारा में भी किसानों को लगभग 200 एकड़ उपजाऊ भूमि गवांनी पड़ी. वैसे छपरा जल संसाधन विभाग की तत्परता से ही बिहार सीमा में आबादी का नुकसान नहीं हुआ, किंतु किसान कंगाल जरूर हो गए. यहां की घाघरा अभी के समय में शांत जरूर है, किंतु उसका रूख अभी भी अबादी की ओर ही है. इतनी भयानक बर्बादी के बाद, खेती के लिए जब जमीन कम पड़ने लगी तो, अधिकांश किसान गांव छोड़ पलायन कर गए. घाघरा कटान रोकने के लिए यहां बिहार ने कई प्रयोग किए, कुछ सफल तो कुछ विफल भी रहे, किंतु कटान रोकने का सिलसिला बंद नहीं हुआ. सभी तरह के प्रयोगों से थकने के बाद छपरा के जलसंसाधन विभाग की पहल पर सिताबदियारा में यूपी-बिहार दोनों सीमा के बचे गांवों को बाढ़ और कटान से सुरक्षित करने के लिए एक बांध बनाने की कवायद शुरू है. कहा जा रहा है कि यह घाघरा कटान का स्था्ई निदान है. गांव के लोग भी मानते हैं, कि देर आए दुरूस्ता आए, यह बांध सिताबदियारा में यूपी-बिहार दोनों सीमा के लिए एक वरदान साबित होगा.

इस तरह बनेगा सिताबदियारा सुरक्षा बांध

इस नए सुरक्षा बांध की लंबाई लगभग आठ किमी निर्धारित की गई है. इस संबंध में पूछने पर अधिकारिक पूष्टि करते हुए छपरा जल संसाधन विभाग के कार्यपालक अभियंता विनोद कुमार व अभियंता सूर्यनाथ सिंह ने बताया कि इस बांध को बनाने के लिए यूपी-बिहार दोनों ही राज्यों में ऊपरी स्तर पर बात हो चुकी है. बिहार सीमा के सिताबदियारा और प्रभुनाथनगर में इसकी लंबाई लगभग चार किमी है, वहीं यूपी सीमा के इब्राहिमाबाद नौबरार सहित अन्यथ इलाकों में भी इसकी लंबाई तीन किमी 425 मीटर है. बिहार सीमा में यह बांध, तीन पार्ट में होगा. इसके अंदर दो रेगुलेटर भी बनाए जाएंगे. वहीं यूपी सीमा में यह दो पार्ट में बनेगा. पहला पार्ट 2300 मीटर और दूसरा 1125 मीटर का होगा. यूपी सीमा में भी दो रेगुलेटर बनाए जाएंगे. बिहार सीमा में इसकी लागत 90 करोड़ है वहीं यूपी में लागत 40 करोड़ है. मसलन इस बांध की कुल लागत 130 करोड़ की है. इस सुरक्षा बांध के सर्वे का काम भी पूरा हो चुका है. संबंधित अधिकारियों के मुताबिक यदि सब कुछ ठीक रहा तो इस साल के अप्रैल से इसका निर्माण कार्य भी शुरू हो जाएगा.

बांध के घेरे में होंगे यह गांव

इस बांध के घेरे में यूपी के इब्राहिमाबाद नौबरार पंचायत के सभी गांव, व बिहार सीमा के सिताबदियारा और प्रभुनाथनगर पंचायत के भी सभी गांव शामिल होंगे. इन गांवों को न सिर्फ कटान से मुक्ति मिलेगी, बल्कि बाढ़ से भी स्थाई रूप से  छुटकारा मिल जाएगा.

काश बन गया होता, इससे पहले का प्रस्तावित बांध

जेपी के गांव सिताबदियारा और यूपी के इब्राहिमाबाद नौबरार को बाढ़ और कटान से बचाने के लिए, वर्ष 2002 में ही सिताबदियारा और इब्राहिमाबाद नौबरार के बाहर एक जयप्रभा सिताबदियारा सुरक्षा बांध बनाने की योजना स्वीकृत थी. तब शायद किसी को यह पता नहीं था कि इस बांध के बनने से क्या  फायदा होगा और नहीं बनने से क्या नुकसान? वर्ष 2011 से 2014 के अंत तक जब यहां घाघरा ने अपना कहर बरपाना शुरू किया तब सभी के पास पछतावे के सिवाय कोई विकल्‍प नहीं बचा था. वजह कि दो राज्यों की पेंच में पीसते-पीसते उस बांध का प्रस्ताव ही यहां लंबे समय के बाद निरस्त कर दिया गया. इस बांध के लिए तीन बार जमीनी सर्वे भी हुआ था, किंतु यूपी और बिहार के राज्यों को लेकर मामला इस कदर फंसा कि वह दिग्गजों के प्रयास के बाद भी नहीं सुलझा सका. 2002 से 2010 तक इस मामले में उच्च स्तसरीय मंथन भी हुए, किंतु इस मामले के निपटारे की राह नहीं निकल सकी. आज  भी सभी मानते हैं कि यदि वह जयप्रभा सिताबदियारा सुरक्षा बांध बन गया होता तो सिताबदियारा या इब्राहिमाबाद नौबरार की इतनी बर्बादी नहीं हुई होती.

बता दें कि तब इस प्रस्तावित बांध की कुल लंबाई 5140 मीटर थी. बिहार सीमा के सिताबदियारा में इसकी लंबाई 3200 मीटर और यूपी के इब्राहिमाबाद नौबरार में इसकी लंबाई 1940 मीटर थी. तब यहां सिताबदियारा और इब्राहिमाबाद नौबरार के किसानों ने भी इसका खूब विरोध किया था.

..और अब कटानरोधी प्रयासों का किस्सा

स्थानीय क्षेत्र में कटानरोधी प्रयासों पर गौर करें तो यूपी के इब्राहिमाबाद नौबरार में तो वर्ष 2011 से 2014 तक कटान रोकने के नाम पर कुछ खास नहीं किया गया. 2015-16 में लगभग 17 करोड़ का एक बजट पास हुआ, जिसके तहत यहां एक स्पोर और जीईओ बैग का कार्य कराया गया. इसके अलावा सिर्फ फाईटिंग के रूप में ही धन पानी में बहाए गए. वहीं बिहार सीमा के सिताबदियारा में तो सरकारी पैसे पानी की तरह लगातार पानी में बहते रहे. यहां चार किमी में कटान को रोकने के लिए पहला प्रयोग बिहार ने वर्ष 2010-11 में पार्कोपाईन के रूप में किया. असफल होने पर दूसरा प्रयोग 2011-12 में बंबू जेट पाईलिंग के रूप में किया गया. यह प्रयोग जब असफल हुआ तब 2013-14 मे जीईओ बैग रिवेटमेंट वर्क के रूप में विशेष तैयारी के सांथ कटानरोधी कार्य कराया गया. यह प्रयोग काफी हद तक सफल भी रहा. इन सभी प्रयोगों में बिहार के लगभग 50 करोड़ रूपये खर्च हुए हैं. यहां ज्यातदार बर्बादी यूपी के इब्राहिमाबाद नौबरार की हुई. स्थाननीय लोग भी मानते हैं कि बिहार का प्रयास इसलिए सफल रहा कि वहां विभागीय तत्परता से अबादी के आशियाने नदी में समाहित नहीं हुए, किसानों को जमीनों से ही हांथ जरूर धोना पड़ा. जबकि इब्राहिमाबाद नौबरार में लापरवाही के चलते ही घाघरा ने तबाही की भयानक दास्तां लिख दी.

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