दुबहर, बलिया. मोक्षदायिनी गंगा समस्त आनंद-मंगलों की जननी ही नहीं बल्कि सभी दु:खों को हरने वाली सर्व सुखदायिनी है लेकिन वही गंगा प्रदूषण के कारण अपनी हालत पर आंसू बहा रही है. आज जीवनदायिनी गंगा का अस्तित्व स्वयं ही खतरे में है. उक्त बातें सामाजिक चिंतक बब्बन विद्यार्थी ने रविवार को ब्यासी ढाला स्थित मंगल चबूतरा पर पत्रकारों से बातचीत के दौरान कही.
उन्होंने कहा कि पावन सलिला मानी जाने वाली गंगा नदी के तट पर बसे अनेक नगरों के नालों से निकले दूषित मल-जल, कल- कारखानों से निकले अवशिष्ट पदार्थ, पशुओं के शव, मानव के अधजले शव छोड़े जाने के कारण गंगा का अमृततुल्य जल अत्यंत दूषित हो रहा है. इसके कारण गंगाजल पर आश्रित रहने वाले गंगातीरी लोगों में हैजा, उल्टी-दस्त, अपच, चर्मरोग, पीलिया एवं मूत्र संक्रमण आदि जैसी बीमारियों का डर सताने लगा है. हालात ऐसे हो गए हैं कि लोग पतितपावनी गंगा में डुबकी लगाने एवं गंगा जल पीने से भी कतराने लगे हैं.
विद्यार्थी ने कहा कि नकारात्मक सोच रखने वाले लोग अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए देश की अमूल्य धरोहर के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. यह बेहद शर्मनाक है. यदि इसी प्रकार प्रदूषण का स्तर बढ़ता रहा तो मानव जीवन ही खतरे में पड़ सकता है. इस मौके पर गोविंद पाठक, डॉ० सुरेशचंद्र प्रसाद, उमाशंकर पाठक, पन्नालाल गुप्ता आदि मौजूद रहे.
(दुबहर से कृष्णकांत पाठक की रिपोर्ट)