मानसून, धान की खेती और पानी !!
नगरा (बलिया) से सुरेश प्रताप (वरिष्ठ पत्रकार)
हम अपने गांव आए हैं. धान की खेती के लिए खेत पहले से ही जोतकर तैयार कर लिए गए हैं. धान की रोपाई के लिए बीज यानी बेहन डाली जा चुकी है, जो तैयार है. लेकिन अभी तक जोरदार बारिश नहीं हुई है. छीटपुट बारिश या झींसी पड़ने से भला धान की रोपाई होती है !! मानसून आ गया है. सुंदरवन की हवाओं के झोंके को गांव में महसूस किया जा सकता है. लेकिन बारिश नहीं हो रही हैं. किसान उदास आंखों से आसमान की तरफ देख रहे हैं.
धान की रोपाई के लिए खेत में भरपूर यानी कम से कम 6 इंच तक पानी होना चाहिए. ताल-तलैया में भी पानी नहीं है. जिसके पास बोरिंग यानी नलकूप की व्यवस्था है, वो अपने कुछ खेत में पानी भरकर, जिसे देशज भाषा में “लेव” लगाना कहते हैं धान की रोपनी कर तो दिए, लेकिन उसके बाद भी पानी चाहिए. अधिकांश खेत रोपनी के एक-दो दिन बाद ही सूख जा रहे हैं.
धान की तैयार नर्सरी की समय से रोपाई नहीं हुई तो वह भी खराब हो जाएगी. बिजली का कोई ठिकाना नहीं ! कब आएगी और कब जाएगी. 10-12 घंटे की विद्युत कटौती हो रही है. विश्वास न हो तो 2-3 दिन गांव में रहकर खुद अनुभव लीजिए ! इसमें हर्ज क्या है ? आखिर हकीकत से रूबरू कैसे होंगे…!!
बादल बरस नहीं रहे हैं. और धरती के पेट से बोरिंग करके कितना पानी खींचिएगा ? अब जलस्तर भी काफी नीचे चला गया है. कुएं खत्म हो गए हैं. कुएं पाट दिए गए हैं. हैण्डपम्प पानी छोड़ दिए हैं. गांव में भी पेयजल बिक रहा है. 20 रुपये गैलन ! एक गैलन में 15-20 लीटर पानी होता है. कुछ लोग घर में आरओ भी लगवा लिए हैं.
जब आदमी के पीने के लिए पानी का संकट गहराता जा रहा है, तो फिर धान की फसल के लिए कैसे किसान कर रहे हैं, पानी का जुगाड़ !! इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.