(कृष्णदेव नारायण राय की कलम से..)
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पूर्व सांसद स्व. गौरी शंकर राय की 98वीं जयंती पर गुरुवार को गौरी शंकर राय कन्या महाविद्यालय, करनई के सभागार में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी ने कहा कि गौरीशंकर राय का व्यक्तित्व बहुआयामी था. मैंने उनसे जीवन मूल्यों, कर्तव्य, अनुशासन के साथ ही अन्याय व शोषण के खिलाफ संघर्ष करना सीखा है. वह जिस किसी मुद्दे पर बात करते थे ऐसा लगता था मानो वह उसी विषय के विद्वान हो.
पूर्व मंत्री नारद राय ने कहा कि गौरीशंकर राय के बताए रास्ते पर चलने को हम सभी संकल्पित हैं. पूर्व विधायक संग्राम सिंह यादव ने कहा कि हमें अपने पुरखों द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए. श्रद्धांजलि सभा को परमात्मा पांडे, भांवरकोल ब्लॉक के पूर्व प्रमुख शारदानंद राय आदि ने संबोधित किया.
इस दौरान कालेज के मेधावी छात्राओं को सम्मानित किया गया. अतिथियों ने विवि स्तर पर एमए गृह विज्ञान में स्वर्ण पदक प्राप्त बुशरा अजीम को महादेव राय स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया. साथ ही विवि स्तर पर सर्वोच्च स्थान प्राप्त छात्राओं में शामिल गुंजन यादव (एमए गृह विज्ञान) को उमाशंकर राय स्मृति चिन्ह व इसी कक्षा की नेहा सिंह को शिवशंकर राय स्मृति चिन्ह दिया गया. महाविद्यालय स्तर पर सर्वाधिक अंक पाने वाली नीतू को रामदुलारी राय स्मृति चिन्ह, डीएलएड की शालिनी गुप्ता व नीलम यादव को संयुक्त रूप से गौरी शंकर राय स्मृति चिन्ह, बीएससी की राजश्री पांडे को हरिशंकर राय स्मृति चिन्ह, बीए की साधना यादव को करुणाकर तिवारी स्मृति चिह्न दिया गया. कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ एसपी सिंह ने सबका आभार जताया. कालेज के संरक्षक पारसनाथ राय ने धन्यवाद ज्ञापित किया. अध्यक्षता सेनानी रामविचार पांडे व संचालन धनंजय राय ने किया.
तार्किक बहस करने वाले मुट्ठीभर सांसदों में गिने जाते थे गौरी शंकर राय
भारत के तार्किक बहस करने वाले मुट्ठीभर सांसदों में जिनकी गणना होती है, उनमें एक नाम स्वर्गीय गौरीशंकर राय का भी है. गौरीशंकर राय जी की ९८वीं जयंती पर उन्हें लोग याद कर रहे हैं, याद उन्हें किया जाता है, जिन्हे हम भूलते हैं, स्वर्गीय उन्हें लिखा जाता, जो नहीं होते. पर जो कभी न भूले हों और हमेशा आप की जेहन में हों, वह स्वर्गीय कैसे?, वे कल थे, आज हैं और कल भी रहेंगें. मुल्क की आजादी का सिपाही अमर होता है.
गौरी शंकर राय जी को पहली बार इमरजेंसी के बाद गाजीपुर कचहरी परिसर में सांसद पद का प्रत्याशी के रूप पर्चा भरते समय देखा था. शायद जीप की बोनट पर या किसी ऐसे ही किसी ऊंचे स्थान पर खड़े होकर अपने शुभचिन्तकों को सम्बोधित कर रहे थे. एकदम सीधा कद्दावर शरीर, गोरा रंग, सुनहरे बाल (सुनहरे इसलिए क्यों कि इमरजेंसी में पहचान छुपाने के लिए उन्हे बालों को काला करना पड़ा था, एल आई यू वाले सफेद वाले गौरीशंकर को खोजते ही रह गये और जब रंगना बन्द किया तो कुछ दिन सुनहरे ही दिखते रहे) एकदम किसी यूरोपियन जैसे.
मै कानून का विद्यार्थी था और संविधान मेरा प्रिय विषय. गौरीशंकर जी, आपातकाल में भारतीय संविधान को बौना करने की सरकारी कोशिशों की आलोचना कर रहे थे, थोड़ा आम जनता के लिए, थोड़ा एकेडमिक भी. मै जब किसी को सुनता हूं, तो ध्यान से सुनता हूं. क्लास में भी जाता तो लेक्चर मन लगाकर सुनता रहा. यह बात अलग है कि क्लास में जाता ही बहुत कम था.
उनके छोटे से सम्बोधन ने मेरे लिए एक दिशा दे दी. इस बार का चुनाव प्रचार अपने जिले में ही होगा. यह गाजीपुर का सौभाग्य होगा कि एक स्वस्थ, मजबूत सोच वाला व्यक्ति हमारे बीच प्रत्याशी के रूप में आया है।
मूलरूप से करनई (बलिया) के गौरीशंकर राय जी के चुनाव में आलोचकों को केवल विरोध का एक ही मुद्दा मिला था, और वह यह कि बाहरी हैं. जीतकर बलिया चले जायेंगें. जो भी हो गौरीशंकर राय तकरीबन 92 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीते. यह देश और साथ ही साथ गाजीपुर का दुर्भाग्य रहा कि जय प्रकाश नारायण के सम्पूर्णक्रान्ति की कोख से पैदा हुई जनता पार्टी अवसरवादी दक्षिणपंथी षणयंत्र का शिकार हो गयी.
तब अखबार छपने के बाद बिकते थे
मै उनके सासंद चुने जाने के बाद भी नयी दिल्ली में ४- डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद मार्ग पर भी कुछ दिन रहा. वे गम्भीर विषयों पर चर्चा करने के साथ ही विनोदी भी रहे। अपने हमउम्र के साथ बैठते तो मजाक भी करते. हम बच्चे भी कभी कदा कान लगाकर सुन लिया करते थे.
बाद के दौर में जब मै पत्रकारिता में आया तो उनकी प्रेस कान्फ्रेन्स में एकबार मुझे हिस्सा लेने का अवसर मिला. मै सिटी रिपोर्टिंग में था. बनारस में लहुराबीर स्थित एक होटल में पत्रकार वार्ता थी – उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव में विलम्ब से उत्पन्न संवैधानिक संकट. मैने वह समाचार दिया और दूसरे दिन आदरणीय विद्याभास्कर जी ने उसी मुद्देपर गौरीशंकर राय जी को कोट करते हुए सम्पादकीय लिखी.
उसदौर में आज अखबार में सम्पादकीय का विषय प्रवर्तक होना, अपने आप में गौरव की बात थी, क्यों कि तब अखबार छपने के बाद बिकते थे, बिकने के बाद छपने का युग नहीं आया था.