गंगा घाटी के पारिस्थितिकी असंतुलन से भविष्य में हो सकता है गंभीर जल संकट:डा. गणेश पाठक

गंगा दशहरा पर विशेष

बलिया। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा के प्राचार्य, भूगोलविद् एवं पर्यावरणविद् डा. गणेशकुमार पाठक का कहना है कि वर्तमान समय में जिस तरह तीव्र गति से गंगा नदी का जल प्रदूषित होता जा रहा है,गंगा में जल की कमी होती जा रही है, प्रवाह क्षेत्र में मलवा का जमाव होता जा रहा है, वनों का विनाश होता जा रहा है, मिट्टी का क्षरण होता जा रहा है एवं जीव जंतुओं का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है, इन सबके चलते गंगा घाटी की सम्पूर्ण पारिस्थितिकी असंतुलित होती जा रही है.
गंगा घाटी क्षेत्र में पारिस्थितिकी असंतुलन का मुख्य कारण यह है कि गंगा नदी के किनारे एक लाख से अधिक जनसंखया वाले प्रथम श्रेणी के 48 एवं द्वितीय श्रेणी के 60 से अधिक नगर हैं. साथ ही साथ 450 से अधिक विभिन्न प्रकार के उद्योग धन्धे भी इस नदी के किनारे स्थापित हैं.

इन सभी नगरों एवं उद्योग धन्धों का कचरा एवं मल मूत्र गंगा नदी में ही गिराया जाता है. जिससे जल पूर्णतया प्रदूषित हो गया है. साथ ही साथ गंगा नदी पर टिहरी बांध एवं नरोरा बांध जैसी अनेक विद्युत एवं सिचाई परियोजनाएं भी निर्मित हैं. जिससे गंगा में जल की कमी हो गयी है एवं प्रवाह मार्ग धीमा हो गया है. फलतः नदी मार्ग में आया हुआ मलवा एवं तलछट आदि नदी तल में जमकर नदी तलहटी को उथला बना रहा है. जिससे नदी में जगह जगह बालू के टीले उभर आए हैं, जिससे गंगा का प्रवाह मार्ग अनेक शाखाओं में विभक्त हो जा रहा है तथा जल की कमी के कारण नदी को पैदल पार करना भी सम्भव हो जा रहा है.

जल की कमी के कारण जलचर जीव एवं पादप समाप्त होते जा रहे हैं. इन सभी परिस्थितियों के चलते गंगा घाटी क्षेत्र पारिस्थितिकी असंतुलन का शिकार हो गया है.

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यदि हम गंगा नदी के जल पारिस्थितिकी की बात करें तो कल-कल, छल-छल की ध्वनि से कलरव करने वाली गंगा की जल पारिस्थितिकी अब पूरी तरह असंतुलित हो गयी, जिसके चलते नदी में रहने वाले जलीय जीवों एवं वनस्पतियों पर संकट के बादल मंडराने लगे है. उद्योगों से निकला विषैला जल एवं कचरा नगरों से निकला मलमूत्र एवं कचरा बिना शोधन के गंगा में गिराया जाता है. जिससे गंगा का जल पूर्णतः प्रदूषित होकर विषैला होता जा रहा है. गंगा नदी ऐसे क्षेत्र से होकर प्रवाहित होती है कि उसके जल में खनिज, लवण एवं अनेक औषधीय तत्व मिले होते हैं. यही कारण है कि गंगा का जल औषधीय गुणों से भरपूर होता था और उसको पीने से पेट सम्बन्धी बीमारियां तथा स्नान करने से त्वचा सम्बन्धी बीमारियां नहीं होती थीं एवं काया कमनीय तथा सुन्दर एवं सुकोमल बनी रहती थी. गंगा जल के औषधीय गुण के कारण ही अधिक दिनों तक रखने पर भी उसमें कीड़े नहीं पड़ते थे.

यही नहीं गंगा के जल में स्वयं शोधन की भी क्षमता थी. किन्तु गंगा जल के ये सारे गुण अब समाप्त हो गये हैं. अब तो गंगा जल इतना प्रदूषित हो गया है कि पीने को कौन कहे, स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया है, और गंगा नदी का सम्पूर्ण जल चक्र ही अव्यवस्थित एवं असंतुलित हो गया है, जिससे दिन प्रति दिन जल में आक्सीजन की कमी होती जा रही है.
यदि गंगा नदी के जीव पारिस्थितिकी को देखा जाय तो इसकी स्थिति भी बड़ी भयावह है और जीव पारिस्थितिकी भी पूर्णतया असंतुलित होती जा रही है. जीवों के जीवित रहने के लिए आवश्यक बीओडी एवं डीओडी की मात्रा भी असंतुलित हो गयी है,जिससे गंगा मे निवासित जलीय जीवों को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है, और गंगा नदी में रहने वाले जीव -जंतु अपने को जीवित रखने में असमर्थ पा रहे हैं. गंगा के जल में अठखेलियां करने वाली डाल्फिन, जिसको क्षेत्रीय भाषा में सोंस भी कहा जाता है, का दर्शन करना भी मुश्किल हो गया है. साथ ही साथ विभिन्न प्रकार की मछलियां, सरीसृप, केंचुआ, मेंढक, सांप, कछुआ आदि जीव जंतु भी धीरे धीरे समाप्त होते जा रहे हैं. जब कि जल पारिस्थितिकी को संतुलित रखने हेतु इन जीवों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
गंगा घाटी क्षेत्र की पादप पारिस्थितिकी भी अब असंतुलित हो गयी है. पहले गंगा के दोनों किनारे पर एवं दियारे क्षेत्र में अनेक तरह की वनस्पतियां एवं झाड़ झंखाड़ उगे रहते थे. अनेक औषधीय वनस्पतियां भी इस क्षेत्र में पायी जाती थीं. इन झरमुटों में अनेक प्रकार के जीव जंतु भी पाए जाते थे. किंन्तु अब इनका नामोंनिशान मिटता जा रहा है. इन वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है. इस तरह गंगा घाटी क्षेत्र की सम्पूर्ण जैव विविधता ही विनष्ट होने के कगार पर है.
गंगा घाटी क्षेत्र की मृदा अर्थात मिट्टी पारिस्थितिकी भी असंतुलित होती जा रही है. पहले जब बाढ़ संतुलित ढंग से आती थी तो बाढ़ के जल के साथ कटकर आने वाली मिट्टी बाढ़ क्षेत्र में जमा हो जाती थी. जो अत्यन्त ही उपजाऊ होती थी. किन्तु अब ऐसा कम हो रहा है.

नदी में जल की कमी के चलते मलवा या गाद जल के साथ कम आ रहा है. जिससे बाढ़ क्षेत्र में नयी मिट्टी का जमाव कम हो रहा है. बल्कि प्रदूषित एवं विषैले जल से मिट्टी भी प्रदूषित होती जा रही है. फलतः मिट्टी की उर्वरा शक्ति धीरे धीरे कम होती जा रही है और इस मिट्टी में रहने वाले जीव जंतुओं के लिए भी खतरा उत्पन्न होता जा रहा है.
इस प्रकार स्पष्ट है कि न केवल गंगा का जल, बल्कि सम्पूर्ण गंगा घाटी क्षेत्र की पारिस्थितिकी ही असंतुलित होती जा रही है. जिसका भयंकर परिणाम हमें भुगतना पड़ेगा. हम गंगा जल को इसी तरह प्रदूषित करते रहे और गंगा जल को निर्बाध रूप से सतत प्रवाहित होने हेतु पर्याप्त जल नहीं छोड़ा गया तो आगे आने वाला समय बेहद खतरनाक होगा और सम्पूर्ण गंगा घाटी क्षेत्र में भयंकर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है.
यदि हमें गंगा को बचाना है, गंगा घाटी क्षेत्र की सभ्यता एवं संस्कृति को बचाना है तो इसके लिए एक तरफ जहां सरकार को संवेदनशील होना होगा एवं टिहरी से गंगा को मुक्त करना होगा, लहीं दूसरी तरफ गंगा से जुड़े या उसके किनारे रहने वाले प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होना चाहिए कि हम किसी भी प्रकार से गंगा को प्रदूषित न होने दें, बल्कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने में हर सम्भव सहयोग करें एवं जन जागरूकता पैदा करें. अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब गंगा एक सूखी लकीर बनकर सरस्वती नदी की तरह विलुप्त न हो जाए. आज गंगा को बचाने हेतु पुनः हमें एक बार भगीरथ प्रयास करना होगा.

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