गाजीपुर/वाराणसी। हिंदी और भोजपुरी के प्रख्यात आंचलिक साहित्यकार डॉ. विवेकी राय का पार्थिव शरीर मंगलवार की शाम मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिका घाट पर पंचतत्व में विलीन हो गया. मुखाग्नि छोटे पुत्र दिनेश राय पोते एश्वर्य राय, यशवन्त राय एवं आनन्द राय ने दी.
इसके पूर्व घाट पर उन्हें सशस्त्र पुलिस की टुकड़ी ने गार्ड आफ आनर दिया. श्री राय के अन्तिम यात्रा में नगर के साहित्यकार, अध्यापक, पत्रकार और बड़ी संख्या में शुभेच्छु शिष्य मित्र नातिन डॉ.मीनू राय समेत परिजन शामिल रहे. घाट पर श्रद्धाजंलि देने वालो में नगर आयुक्त वाराणसी, एडिशनल एसपी लल्लन राय, एडीएम ओम धीरज चौबे, महापौर रामगोपाल मोहले, साहित्यकार डॉ.त्रिभुवन वेणू, डॉ.गया सिंह, डॉ.गंगाधर शर्मा गंगेश, शेषनाष नाथ राय, बीएचयू हिन्दी विभाग के डॉ.रामाज्ञा शशिधर, श्री प्रकाश शुक्ल, डॉ.वाचस्पति, डॉ.चन्द्रशेखर, पत्रकारिता विभाग के सहायक प्रो.धीरेन्द्रराय, विद्यापीठ के प्रो. श्रद्वानन्द, पूर्व सचिव उत्तर प्रदेश लाल जी राय, वीरभद्र राय, रजनीकांत राय उपाध्यक्ष ब्रह्मर्षि समाज बेंगलुरु,, सिद्धार्थ राय, आनन्द राय मुन्ना आदि शामिल रहे. इसके पूर्व डीरेका स्थित पुत्रवधु के आवास पर श्रद्धाजंलि देने केन्द्रीय रेल मंत्री मनोज सिन्हा भी पहुंचे थे.
गाजीपुर पीजी कॉलेज में हिंदी के रीडर रहे श्री राय काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. उनका वाराणसी में निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था. परिजनों ने 19 नवम्बर को उनका जन्मदिन भी मनाया था. 70 से अधिक पुस्तक लिखने वाले श्रीराय की चर्चित रचना ‘सोनामाटी’, ‘लोकऋण’, ‘जुलूस रुका है’ और ‘समर शेष है’ ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई. खास बात रही कि उनकी हर रचना में स्थानीय पात्र ही रहे हैं. श्री राय को साहित्यभूषण, शरद जोशी पुरस्कार, यश भारती पुरस्कार भी मिल चुका है. उनके रचनाओ के पर 125 से अधिक शोध भी हो चुके हैं.
उनके दो बेटों में ज्ञानेश्वर राय मलसा इंटर कॉलेज में प्रवक्ता थे और ट्रेन हादसे में उनकी मौत हो गई. छोटे बेटे दिनेश पैतृक गांव सोनवानी, गाजीपुर में ही रहकर खेतीबाड़ी करते हैं. बेटे की मौत के बाद टुट चुके डॉ.राय ने देहरी के पार उपन्यास में दर्द को पात्रों के जरिये बयां किया है. डॉ. विवेकी राय अपनी मां जविता कुंवर के गर्भ में ही थे, तभी उनके पिता शिवपाल राय का निधन हो गया था. डॉ.राय का जन्म 19 नवम्बर 1924 को ननिहाल बलिया जिले के भरौली गांव में हुआ था. ननिहाल में ही उनका पालन पोषण मां और नाना ने मिलकर किया था.