टाउन हॉल के मैदान में सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा का दूसरा दिन
बलिया। भागवत महापुराण साक्षात भगवान का ही एक स्वरुप है. श्री कृष्ण भगवान अपने माता पिता के चरणों में सिर रखकर प्रणाम करते हैं. अतः हम सब को भी अपने माता-पिता, सास-ससुर, बड़े जनों का सम्मान आदर करना चाहिए.
राजा परीक्षित को जब शाप लगा कि आज के सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा, तो राजा राजपाट परिवार को छोड़कर सुकताल में गंगा तट पर चले गए. वहीं पर सुखदेव जी का आगमन हुआ. राजा परीक्षित के कल्याण के लिए सुखदेव जी महाराज ने भागवत कथा का श्रवण कराया. चतुश्लोकी की चर्चा की भागवत की चौथी श्लोकी भागवत का विस्तार ही 18 हजार श्लोकों के रूप में हुआ है.
उक्त उदगार टाउन हॉल के मैदान में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा के द्वितीय दिन वृंदावन धाम से पधारे पंडित राधेश्याम जी शास्त्री ने श्रोताओं को कथा का रसपान करवाते हुए कहा. बोले कि भागवत के तृतीय स्कंध में विदुर जी एवं उद्धव जी का संवाद जमा कराया. बाद में विदुर और मैत्रेय संवाद की कथा सुनाई. वाराह भगवान की कथा सुनाई. भगवान ने पृथ्वी के उद्धार के लिए (सुकर) वाराह का अवतार ग्रहण किया. आगे कथा क्रम में भगवान कपिल एवं माँ देवहूति का संवाद श्रवण करवाया. बताया कि जब तक जीव मनुष्य की आशक्ति संसार में रहेगी, तब तक जीव का संसार में बार बार जन्म मरण होता रहेगा. अतः जन्म मरण से छुटकारा पाने के लिए संसार की आशक्ति का त्याग कर प्रभु शरणागति स्वीकार करनी चाहिए.
श्री शिव सती चरित्र की कथा में समझाया कि धर्म यज्ञादि किसी को नीचा दिखाने के लिए किया जाए तो वह अधर्म और पाखंड की श्रेणी में आता है. अतः धर्म किसी से बदला लेने के लिए नहीं स्वंय अपने को बदलने के लिए होता है. इस दौरान शिव पार्वती की भव्य शादी की झांकी का मंचन हुआ. जिसमें श्रद्धलु मंगलगीत गाकर झूमे. इस आयोजन में स्वयंसेवी संस्थान सेवा भाव के लिए जी जान से लगी रहे.