बलिया से कृष्णकांत पाठक
बैरिया मैं तिरंगा फहराने तथा पुलिस फायरिंग में भारी संख्या में लोगों के शहीद होने के बाद जहां ब्रिटिश हुकूमत घबरा गई थी, वहीं पर बलिया के बच्चे, बूढ़े, जवान सभी में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत कूट-कूट कर भर गया था.
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उन्होंने बलिया में एक समानांतर सरकार चलाई. देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व घटना थी. 22 अगस्त को दर्शील के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना की टुकड़ी बलिया में दोबारा कब्जा करने को आई तो चित्तू पांडेय उजियार घाट में सफलतापूर्वक चकमा देकर गंगा नदी पार कर भूमिगत हो गए. चित्तू पांडेय का जन्म 1896 में गांव रत्तू चौक, सागर पाली, बलिया में हुआ था. उनके पिता का नाम राम नारायण पांडेय था. बलिया में कांग्रेस संगठन को मजबूत करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.
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दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उन्होंने किसान हितों को कांग्रेस के कार्यक्रम में शामिल कर कांग्रेस की सदस्य संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी की थी. 1935 में जिला बोर्ड के सदस्य बने. 1942 के पहले 1920 1930, 1932 तथा 1945 में भी चित्तू पांडे जेल गए थे. 1946 में वे एमएलए बने तथा इसी वर्ष उनका निधन भी हो गया.1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय चित्तू पांडेय जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे. उन्हें 9 अगस्त को गिरफ्तार कर बलिया जेल में बंद कर दिया गया. 19 अगस्त को लगभग दस हजार लोग जेल के सामने एकत्र हुए. भीड़ ने चित्तू पांडेय की रिहाई की मांग की. तत्कालीन कलेक्टर का नियंत्रण प्रशासन पर नहीं रह गया था. उसे हार मानकर जेल के दरवाजे खोलने पड़े और वह चित्तू पांडेय से यह कहने को मजबूर हुआ कि पंडित जी, अब आप ही पर इस भीड़ को संभालने और शांति व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेदारी है. इस तरह चित्तू पांडेय ने स्वाधीन बलिया की बागडोर संभाली और 3 दिनों के लिए बलिया स्वतंत्र हो गया.
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