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विजय शंकर पांडेय
यदि गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो शायद तिनसुकिया जिले के दिनेश प्रजापति और उनकी पत्नी तारा देवी को दिवंगत मां के श्राद्ध करने की भी अनुमति नहीं मिली होती. इस साल मुल्क जब 72वां स्वतंत्रता दिवस मना कर खाली हुआ तो बेटे दिनेश और बहू तारा देवी की रिहाई की गुहार लगाते लगाते बलिया की मूल निवासी छुटकी देवी ने थक हार कर सदमे से दम तोड़ दिया. छुटकी देवी का अपराध मात्र यही था कि उन्होंने या उनके पति ने करोड़ो-अरबों का वारा न्यारा कर एंटीगुआ या किसी अन्य मुल्क की नागरिकता खरीदने भर का माद्दा जीते जी पैदा नहीं कर सके, वरना उनके बच्चे भी आज दुनिया की किसी अदालत में भारत की जेलों की खराब हालत का हवाला देते हुए याचिका दाखिल कर दिए होते.
इंडियन एक्सप्रेस को प्रजापति दंपति के वकील ने बताया है कि हाईकोर्ट ने उनकी याचिका पर विचार करते हुए उन्हें मां के श्राद्ध के लिए 9 सितंबर तक अंतरिम सशर्त जमानत पर रिहाई की अनुमति दी थी. द टेलीग्राफ से बातचीत में असम प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता गौरव सोमानी ने इस दंपति की गिरफ्तारी पर कहा है कि इस प्रकरण के चलते पूरे प्रदेश के हिंदी भाषियों में दहशत का माहौल है. सोमानी ने दंपति के फोटो वोटर की कॉपी दिखाते हुए इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किया है. उनका कहना है कि हिंदी भाषियों को सिर्फ संदिग्ध मतदाता करार देकर जेल में कैसे रखा जा सकता है? इस मुद्दे पर सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहिए.
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न्यूज पोर्टल नॉर्थईस्टइंडिया 24 से बातचीत में भाजपा विधायक और हिन्दीभाषी समन्वय समिति के अध्यक्ष अशोकानंद सिंघल ने भी दिनेश प्रजापति और उनकी पत्नी को विदेशी बताए जाने और डिटेंशन कैम्प में डाल देने के मामले को अमानवीय करार दिया है. कहा कि नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन (NRC) का काम बांग्लादेशियों की शिनाख्त के लिए किया गया, कुछ लोग इस प्रक्रिया को डाइवर्ट कर भारतीय नागरिकों को परेशान कर रहे हैं, जो लोग इस प्रक्रिया को बाधित कर भारतीय नागरिकों को परेशान कर रहे हैं, उन लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए.
I hope you act as you make statement. One #DineshPrajapati & his wife #TaraPrajapati kept in jail due to ill itention of some officials in Assam. Originally from Ballia UP, Father of Dinesh settled in a village of Tinsukia around 1945 but officials trying to make him foreigner. pic.twitter.com/ypSBHYk5nA
— Ashok (@ashoksah) September 9, 2018
दिनेश प्रजापति का मामला सुर्ख़ियों में आने के बाद हिंदी भाषियों को विदेशी बताने के और भी मामले सामने आने लगे हैं. इन्हीं मामलों में एक मामला गुवाहाटी के लाल बाबू पासवान का भी है. बिहार के पूर्वी चम्पारण से तीन दशक पहले रोटी के तलाश में वहां पहुंचे लाल बाबू को भी विदेशी न्यायधिकरण की ओर से नोटिस मिला है और उन्हें विदेशी बताया गया है. इस तरह की हरकतों से असम में रहने वाले हिंदी भाषी डरे-सहमे और परेशान से हैं. उन्हें यह आशंका सताने लगी है कि पता नहीं कब उन्हें विदेशी करार दिया जाए और अपने ही देश में नागरिकता साबित करने की नौबत आ जाए. परेशान हिन्दीभाषी अपने नेताओं के पास फरियाद ले कर पहुंच रहे हैं, लेकिन नेताओं के पास भी उनकी फ़रियाद सुनने के आलावा और कोई चारा नहीं है.
डेक्कन क्रोनिकल के पत्रकार मनोज आनंद लिखते हैं कि रोजी रोटी की तलाश में साल 1945 में पति परशुराम संग बलिया से असम पहुंचने वाली 70 वर्षीय छुटकी देवी की हिम्मत व धैर्य बेटे व बहू को संदिग्ध वोटर करार दिए जाने व जेल भेज दिए जाने से टूट चुकी थी. परशुराम और छुटकी की पांच संतानें हुई. दो बेटे दिनेश और राजेश तथा तीन बेटियां. ये सभी असम में पैदा हुए और वहीं शादी भी कर लिए. दिनेश व तारा की गिरफ्तारी के बाद उनके पांच बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी भी बुजुर्ग असहाय छुटकी देवी पर ही था. दिनेश के बड़े बेटे धीरज प्रजापति ने आठवीं बाद पढ़ाई छोड़ दिया और अपने व परिजनों के दो वक्त की रोटी जुगाड़ने में जुटा है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक खेतिहर मजदूर बनकर पत्नी छुटकी देवी संग असम पहुंचने वाले परशुराम का नाम 1968 की वोटर लिस्ट है, जबकि उनकी बहू तारा के पिता का नाम 1966 की वोटर लिस्ट में है. वे ऐसे कागजात भी प्रस्तुत कर रहे हैं जो साबित करते हैं कि वे बलिया के मूल निवासी हैं. आल असम भोजपुरी परिषद के अध्यक्ष कैलाश गुप्ता व हिंदी विकास परिषद के वकील राय का कहना है कि हिंदी भाषियों की नागरिकता को संदिग्ध करार देना हैरतअंगेज है. आल असम भोजपुरी छात्र परिषद के अजय सिंह व अवधेश रस्तोगी की माने तो ऐसे दर्जनों मामले हैं, जिसमें बिहार व यूपी से असम पहुंचने वाले लोग संकटों का सामना कर रहे हैं.
एशियन एज के मुताबिक प्रजापति दंपति के आश्रित बच्चों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके पास इंदिरा आवास के सिवाय कुछ नहीं हैं, जो जीने का सहारा बन सके. माता-पिता की अनुपस्थिति में रोटी के भी लाले पड़े हैं. छुटकी देवी जब तक जीवित थी, बेटे-बहू की रिहाई के लिए गुहार लगाती फिर रही थी. अब वह भी नहीं रही. अब स्थानीय ग्रामीण ही दिनेश व तारा के बच्चों की उम्मीदों के किरण हैं.
(इस खबर के साथ दी गईं तस्वीरें द टेलीग्राफ व नॉर्थईस्टइंडिया 24 के अलावा ट्वीटर से साभार ली गई हैं)
Assam: 70-yr-old mother dies after son declared doubtful citizen in NRC draft. The son Dinesh and his wife have been languishing in a detention camp in Tinsukia district after they were declared as Doubtful Voters.