प्रयागराज से आलोक श्रीवास्तव
अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए रविवार को बुलाई गई ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक खत्म हो चुकी है. बोर्ड के ज्यादातर सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने और 5 एकड़ भूमि न लेने पर सहमति जताई है.
सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या फैसले पर बैठक के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सैयद कासिम रसूल इलियास ने कहा कि बोर्ड ने अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में एक समीक्षा याचिका दायर करने का फैसला किया है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेता मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हम जानते हैं कि हमारी समीक्षा याचिका 100 फीसदी खारिज कर दी जाएगी, हमें एक समीक्षा याचिका दायर करनी चाहिए. यह हमारा अधिकार है.
अगले दो सप्ताह में दाखिल हो सकती है याचिका
उम्मीद जताई जा रही है कि अगले दो सप्ताह में बोर्ड इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है. हालांकि, मुकदमे में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील रहे जफरयाब जिलानी और AIMIM नेता असदुद्दीन उवैसी की राय से मुख्य वादी इकबाल अंसारी सहमत नहीं हैं.
सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी इस पर पहले हीअसहमति जता चुके हैं. अयोध्या निवासी व बाबरी मस्जिद मुकदमे के मुख्य वादी इकबाल अंसारी का कहना है कि ऐसे लोग माहौल को बिगाड़ना चाहते हैं. उन्हें डर है कि यह मुद्दा खत्म होने के बाद उनकी दुकानदारी बंद हो जाएगी.
अंसारी का कहना है कि दोनों समुदाय के लोगों को बताएंगे कि वे विवाद का रोजगार करने वालों से दूर रहें. सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारुकी भी पहले ही कह चुके हैं कि बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संतुष्ट है. वह समीक्षा याचिका दाखिल करने के पक्ष में नहीं हैं. किसी भी व्यक्ति के द्वारा कही गई बात उनकी या बोर्ड की न मानी जाए.
बताया जाता है कि सुबह 10 बजे लखनऊ के नदबा कॉलेज में बुलाई गई एआईएमपीएलबी की बैठक अचानक किसी दूसरी जगह शिफ्ट कर दी गई. ऐसा क्यों हुआ, इसकी वजह तो पदाधिकारी ही बता सकेंगे लेकिन बैठक के पहले से ही असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सार्वजनिक तौर पर आलोचना शुरू कर दी थी.
उन्होंने 5 एकड़ जमीन न लेने की मांग की थी. तर्क दिया कि जिसका घर था उसकी बात नहीं सुनी गई. फैसले के ही दिन जफरयाब जिलानी ने भी प्रेस कांफ्रेस कर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की संभावनाओं को जिंदा रखा था.
फैसला आते ही सुर बदल गए
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के पहले यह सभी नेता एक सुर से यह कहते सुने गए थे कि फैसला जैसा भी होगा, स्वीकार किया जाएगा. फैसले के बाद उनके सुर बदल गए. इससे यह आशंका भी हो रही है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का जिलानी और ओवैसी के प्रभाव वाले गुट किसी न किसी तरीके से इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहते हैं.
वह तकरीरों के जरिए मुसलमानों को भड़काने का बहाना तलाश रहे हैं. ऐसे में यह भी साफ है कि लखनऊ में बुलाई गई बैठक सिर्फ बहाना है. पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फैसला पहले ही लिया जा चुका है. (तस्वीर साभार:gulfnews.com)