

डा० गणेश पाठक, पर्यावरणविद्
पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के संरक्षण हेतु पूरे विश्व में 5 जून को प्रतिवर्ष ‘पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है,जिसके लिए प्रतिवर्ष कोई- कोई विशेष थीम रखी जाती है ,जिसको केन्द्रित कर पूरे वर्ष पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इस वर्ष की पर्यावरण थीम रखी गयी है ‘पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली”. इस संदर्भ में अमरनाथ मिश्र पी जी कालेज दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि मानव एवं पर्यावरण एक दूसरे के पूरक हैं . परस्पर समायोजन द्वारा ही पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र को बचाकर पृथ्वी को विनष्ट होने से बचाया जा सकता है.

डा० पाठक ने बताया कि मानव एवं पर्यावरण एक दूसरे के पूरक हैं. प्रारम्भ से ही मानव प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करता आ रहा है, किंतु जब तक मानव एवं प्रकृति के संबंध सकारात्मक रहा तब तक पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी असंतुलन संसबधी कोई भी समस्या नहीं उत्पन्न हुई,किंतु जैसे- जैसे मानव की भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अनियोजित एवं विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अतिशय दोहन एवं शोषण बढ़ता गया,पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र का असंतुलन बढ़ता गया जिससे प्राकृतिक आपदाओं में भी निरन्तर वृद्धि होती जा रही है.
मानव पर पर्यावरण के प्रभाव एवं पर्यावरण पर मानव के प्रभाव दोनों में बदलाव आता गया, जिसके परिणामस्वरूप अनेक तरह के बढ़ते घातक प्रदूषण तथा ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन के चलते मानव एवं पर्यावरण के अंतर्संबंधों में भी बदलाव आता गया. मानव के कारनामों के चलते हरितगृह प्रभाव एवं ओजोन परत के क्षयीकरण ने इसमें अहम् भूमिका निभाई, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में तीव्रता के साथ बदलाव आता गया , कारण कि पारिस्थितिकी के विभिन्न कारक तेजी से समाप्त होते गये ,जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन बढ़ता गया और मानव वातावरण के अंतर्संबंधों में भी बदलाव आता गया.
आज आवश्यकता इस बात की है कि यदि हमें पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को बचाना है तो पारिस्थितिकी तंत्र के समाप्त हुए घटकों की पुनर्बहाली करनी होगी.हमें विकास के ऐसे पथ को अपनाना होगा, जिसमें हमारा विकास भी चिरस्थाई हो एवं पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति भी कमसे कम हो.इसके लिए मानव एवं पर्यावरण के मध्य समायोजन करना होगा तभी पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित एवं संरक्षित रखा जा सकेगा.