गणेश पाठक
द्वाबा के मालवीय कहे जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी पं. अमरनाथ मिश्र एक सच्चे कर्मयोगी थे. वे न केवल स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक सच्चे कर्मयोगी के रूप में शैक्षिक उन्नयन के प्रणेता, सच्चे समाज सेवी, राजनीतिज्ञ, धार्मिक- आध्यात्मिक उत्थान के प्रणेता एवं एक विकास पुरुष थे. वास्तव में वे एक बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी मनीषी थे. उनके शब्दकोश में असम्भव नाम का कोई शब्द नहीं था.
पं. अमरनाथ मिश्र एक सहृदय, सहनशील, सहयोगी, सत्कर्म के पथ पर चलने वाले एवं साधना में लीन रहने वाले व्यक्ति थे. वे समग्र विकास के पुरोधा थे, जिसके तहत उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक- आध्यात्मिक प्रत्येक क्षेत्र में ऐसे कार्य किए हैं कि उनकी मिसाल दी जाती है. उन्होंने अनेक विद्यालयों की स्थापना की, जिसमें प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के शिक्षा केन्द्र हैं. उनके द्वारा अपने गाँव में चिकित्सकालय की भी स्थापन कराई गयी है तथा कन्या विद्यालय भी स्थापित किया गया है.
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हरिद्वार में, अयोध्या में एवं बद्रीनाथ में उनके द्वारा धर्मशालाओं की भी स्थापना की गयी है. यह संयोग ही कहा जायेगा कि उनका अवतरण एवं अवसान आषाण मास की पूर्णिमा को ही हुआ था. ऐसा संयोग मनीषी पुरुष को ही मिलता है. उनका इस धरा पर अवतरण बलिया के बलिहार गाँव में हुआ था. वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे. अपनी तरूणाई को उन्होंने देश को समर्पित करने में सौंप दिया और आजीवन देश सेवा की एवं समाज सेवा की ही बात सोचते रहे. अंत में गुरु पूर्णिमा के दिन 20 जुलाई, 2005 को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त कर दी. किन्तु पं. मिश्र जी आज भी अपने कार्यों से हमारे बीच हैं और सदैव हमारे बीच में रहेंगे. आज उनकी 94वीं जयंती पर उनको शत- शत नमन. कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट एवं लॉकडाउन के चलते इस वर्ष उनकी जयंती पर विस्तृत कार्यक्रम न करके सिर्फ माल्यार्पण ही किया जाएगा.
(लेखक अमर नाथ मिश्र पीजी कॉलेज, दुबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य हैं)
Great purush