जयप्रकाशनगर, बलिया से लवकुश सिंह
बाढ़ की भयंकर तबाही से हजारों लोगों के घर बर्बाद हो गए, पीड़ितों की जिंदगी थम सी गई, वे सड़क पर जीवन बसर करने को मजबूर हैं. वहीं कुछ लोगों के लिए बाढ़ पीड़ितों के बहते आंसू सेल्फी लेने और सोशल मीडिया पर अपनी राजनीति चमकाने का जरिया बन गये है. काश ! सोशल साइट पर जितना राहत वितरित हो रहा है, धरातल पर भी कुछ वैसा ही होता. बाढ़ का पानी अब भले वापस लौट गया,लेकिन अपने पीछे एक नहीं, कई समस्याओं को छोड़ गया.
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कहीं लोग गंदगी के बीच जिंदगी जीने को मजबूर हैं, तो कहीं बाढ़ के पानी में घर का सब कुछ नष्ट हो गया. पशुओं की भूसा, खाने के लिए रखा गया अनाज, चौकी, बिछावन और अन्य जरूरी सामान, सब बाढ़ में बर्बाद हो गया. ऐसे समय में बाढ़ पीड़ितों को मदद की दरकार है. बाढ़ प्रभावितों का कहना है कि कई लोग मदद के लिए आगे आये हैं. लेकिन इस मुश्किल घड़ी में ऐसे लोग ज्यादा हैं जो राहत सामग्री कम लोगों में वितरित कर पीड़ितों के साथ अपना फोटो खिंचवाने और सेल्फी लेकर उसे सोशल मीडिया फेसबुक आदि में शेयर करने में मस्त हैं.
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वहीं कुछों को अपनी की राजनीति की चिंता है, इसलिए वह अपनी जान पहचान के लोगों को ही राहत वितरित कर रहे हैं. उन्हें सिर्फ अपने से जुड़े मतदाताओं की चिंता है. वे अपने क्षेत्र से संबंधित लोगों की पहचान कर केवल उन्हें ही राहत सामग्री वितरित कर रहे हैं. हालांकि, कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बिना कसी हलचल के, एक पंक्ति से बिना किसी भेद-भाव के राहत के रूप में पके-पकाए भोजन, साड़ी, तिरपाल और अन्य उपयोगी सामान वितरित कर रहे हैं.
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उन्हें न सोशल मीडिया से कोई मतलब है, न अपने नाम के प्रचार प्रसार से. वह बिना शोर किये चुपचाप राहत कार्य में जुटे हैं. फिर वह बैरिया विधान सभा क्षेत्र का जयप्रकाशनगर क्षेत्र हो या दोकटी, दुबे छपरा, उदई छपरा, इब्राहिमाबाद नौबरार, चांददियर, आदि के बाढ़ पीड़ित. हालात सब जगह एक जैसे हैं.
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