

बलिया से लखनऊ आए ये सज्जन कल जनचेतना की पुस्तक प्रदर्शनी में काफ़ी देर तक घूमकर बड़ी हसरत से किताबों को देख रहे थे. फिर उन्होंने अन्ना हज़ारे और केजरीवाल के आन्दोलन तथा पूँजीवादी व्यवस्था में भ्रष्टाचार के सवाल पर लिखे लेखों के संकलन को लेने के लिए चुना. किताब की कीमत 50 रुपये है, लेकिन उनके पास छोटे-छोटे सिक्कों के रूप में कुल 44.50 रुपये ही थे. हमने उन्हें किताब की विषयवस्तु के बारे में बताया क्योंकि कभी-कभी कुछ लोगों को भ्रम हो जाता है कि इसमें भ्रष्टाचार ख़त्म करने के कुछ नुस्खे बताये गये हैं. लेकिन वे बोले कि हम समझ गये हैं और हमें यही किताब लेनी है. कुछ सिक्के अपने पास रखकर बाकी उन्होंने हमें दिये और खुशी-खुशी किताब लेकर गये. अफ़सोस कि स्टॉल पर लोगों की भीड़ होने के कारण हम उनसे और बातचीत नहीं कर पाये. आज एक मित्र ने उनकी यह फ़ोटो हमें भेजी तो लगा कि इसे आप सबके साथ भी साझा किया जाये.
जनचेतना की प्रदशर्नियों में हमें अक्सर ऐसे पाठक मिलते हैं जिन्हें अच्छी किताबों की बहुत तलब होती है, लेकिन उनके पास पैसे नहीं होते. हम यथासंभव उनकी मदद करते हैं, लेकिन हर ऐसी घटना यह अहसास कराती है कि इस व्यवस्था में ज्ञान पर कुछ लोगों की इजारेदारी और पैसे की पहरेदारी कितनी कड़वी सच्चाई है. (फेसबुक वाल से साभार)
