4 संडे, 2 शनिवार, 4 शोक दिवस, 9 सरकारी छुट्टियां, एक तहसील दिवस, एक थाना दिवस, अब काम कब हो

बैरिया (बलिया)। अगर यह मानना सच है कि विलंब से मिलने वाला न्याय अन्याय के समान होता है, तो बैरिया तहसील के न्यायालयों में सिर्फ अन्याय ही हो रहा है. वर्षों से फरियादी अपने लंबित वादों के निस्तारण के लिए तहसील के न्यायालयों का चक्रमण कर रहे हैं. हर तारीख पर उनके पूर्व निर्धारित खर्च लगते हैं. बावजूद इनको तारीख पर तारीख ही मिलते हैं. इसके पीछे सरकारी छुट्टियां, शोक दिवस और अधिवक्ताओं का हड़ताल सबसे बड़ा कारक है. इसका फायदा उठाकर उक्त न्यायालयों के जिम्मेदार अधिकारी भी मौज से वादकारियों को बस डेट देकर टालते ही रहते हैं.

यहां के तहसीलदार न्यायालय में अगर तरमीम के मामलों को ही देखा जाए तो कुल 745 मामले लंबित पड़े हैं. इसमें बहुत से मामले 5 से 7 साल पहले डाले गए और आज तक उसका निपटारा नहीं हुआ. जबकि तरमीम की अवधि बहुत कम दिन की ही होती है. रानीगंज निवासी आशा देवी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के व्यक्तिगत ट्विटर हैंडल पर ट्वीट करके अपना दुखड़ा सुनाया है. बावजूद इसके 15 दिन बाद तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. तहसील के फिजा में अगर कोई जमीन खरीद करता है, तो यहां एक रैकेट है, जो अनावश्यक रूप से एक कागज पर कंप्लेंट दर्ज करा देता है और वहीं से शुरू हो जाता है तरमीम में लूट खसोट का दौर. बड़े ही निर्दयता के साथ ऐसे लोगों से धन की नोच-खसोट होती है.  क्रेता परेशान होकर रह जाते हैं. जबकि वह सरकार को खरीद के वक्त बाकायदा टैक्स अदा करते हैं.

बैरिया के तहसीलदार मिश्री सिंह चौहान

इस बाबत बैरिया के तहसीलदार मिश्री सिंह चौहान से जब सवाल पूछा गया, तो उनका अलग ही कथन था. वह अप्रैल माह के 26 तारीख तक का हिसाब देते हुए बोले कि इस माह में केवल 2 दिन ही कोर्ट चला है. 4 दिन संडे, 4 दिन अधिवक्ताओं द्वारा शोक दिवस अथवा आवश्यक मीटिंग द्वारा कोर्ट न चलाने का अनुरोध, 2 शनिवार और 9 सरकारी अवकाश, एक तहसील दिवस और एक थाना दिवस कुल 21 दिन तो बिना काम के ही निकल गया.

आप खुद सोच सकते हैं कि काम कैसे हो. कुल मिलाकर तहसील के न्यायालयों में से तारमीम का मामला तो उदाहरण भर है. यहां के न्यायालयों में अन्य प्रकार के भी मामलों का अंबार लगा हुआ है. जनता को सिर्फ तारीख पर तारीख ही मिलती जा रही है. 15 दिनों के अवकाश को समाप्त करने वाले प्रदेश के मुखिया को इस बात पर भी गौर फरमाना चाहिए कि प्रदेश के तहसीलों के न्यायालयों में लंबित ऐसे मामले जिनका निस्तारण 15 से 90 दिन के अंदर होना चाहिए, वह वर्षों तक न खिंचने पाएं. ऐसा परेशान पीड़ित वादकारियों की मुख्यमंत्री से गुहार है.

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