
बलिया से कृष्णकांत पाठक
महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो नारे का प्रभाव बलिया में बढ़ता जा रहा था, न केवल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, बल्कि विद्यार्थी एवं महिलाएं भी इस आंदोलन में कूद पड़ी थी. अंग्रेजों भारत छोड़ो की आवाज बलिया के न केवल शहर, बल्कि गांव-गांव में गूंजने लगी थी अधिवक्ताओं ने 11 अगस्त 1942 को अदालतों का बहिष्कार कर दिया था.
पंडित रामानंद पांडेय ने हड़ताल का आह्वान किया और उनके नेतृत्व में पूरा बलिया जनपद जिला मुख्यालय की ओर बढ़ चला. अंग्रेजों के तांडव एवं अत्याचार से विद्यार्थियों का अभी गुस्सा फूट पड़ा. विद्यार्थियों ने अपने अपने कालेजों से जुलूस निकाला और अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया.
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इस दिन पंडित रामानंद पांडेय को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. इस आंदोलन का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में आग की तरफ फैलने लगा था. जनपद के कस्बा रानीगंज खजूरी और बेल्थरा रोड में भी छात्रों ने जुलूस निकाला. ग्रामीणों ने भी छात्रों का साथ दिया. जनपद के रानीगंज में में काली प्रसाद, मदन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया. सिवान कला सिकंदरपुर से राधा-कृष्ण को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. इन लोगों की गिरफ्तारी से बलिया वासी भयभीत न होकर आंदोलन को तेज करने की तैयारी करने लगे. गांव गांव स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की टोली निकल पड़ी.
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आंदोलन को धार देने के लिए ग्राम रक्षक दलों की स्थापना में अहम भूमिका निभा रहे शिवपूजन सिंह (सुखपुरा), जमुना सिंह (दतौली), श्रीपति कुॅवर (सहतवार), बृन्दा सिंह (सकरपुरा), गजाधर (बंकवा), बृन्दा सिंह चौबे और राम लक्षण तिवारी (बलिया) हरगोविन्द सिंह (नगरा) और महानन्द मिश्र (बलिया) एकमत होकर गांवों में युवाओं का संगठन बनाकर उन्हें रक्षात्मक और प्रहारात्मक ट्रेनिंग कर क्रांति के लिए तैयार कर रहे थे.
My grand father sree ram laxhan tiwari also is the part of this krantee – Vandana Tiwari (बलिया लाइव के फेसबुक वाल पर)
जगदीश ओझा सुंदर की कालजयी रचना
पूछो उन अमर शहीदों की अगणित विधवाओं से पूछो
उन मदन सरीखे शिशुओं की व्यथिता माताओं से पूछो
बलि एक यहाँ के दानी थे, अब तो अगणित बलिदानी हैं
भारत छोड़ो के नारे की…
जालिम की जुल्मों जिनने प्रतिकार किया है सीनों से
पूछो उनसे यह लाल कथा, जो खेल चुके संगीनो से
अब भी बलिया के युवकों में बयालीस का खून उबलता है
नर नारी क्या इस नगरी के, कण कण में शोणित जलता है
यह अमर शहीदों की बस्ती, इक खेल यहाँ कुर्बानी है
भारत छोड़ो के नारे की…
भृगुधाम नही ऋषिधाम नही, अब तो बलिया बलिधाम हुआ
राष्ट्रीय तीर्थ रसड़ा अब है, बैरिया वीरता ग्राम हुआ
अब बाँसडीह बलिदान-डीह स्वतंत्र सदन अभिराम हुआ
है धन्य-धन्य यह धराधाम, बयालीस में जिसका नाम हुआ
जिसके बूढ़ों की भी रग में युवकों सा जोश जवानी है
भारत छोड़ो के नारे की…
घर घर है अपने अंतर में बर्बरता का उपहास लिए
कण कण गर्व आलोकित है, कुर्बानी का इतिहास लिए
ध्वन्सव्शर्श खंडहर भी है, निज नाशों पर उल्लास लिए
मानवता यहाँ मचलती है, निज भावी विमल विकास लिए
बर्बादी पे आँसू ढलना, समझा हमने नादानी है
भारत छोड़ो के नारे की..
आ यहाँ अदब से रे राही, इसको कुछ सुंदर फूल चढ़ा
आदर से इसको शीश झुका, शिर पर आँखों पर धूल चढ़ा
पथ में इसके बलिदनो की रक्तिम कल कथा सुनता जा
जा झूम झूम आज़ादी के, पूर जोश तराने गाता जा
यह स्वतंत्रता की यज्ञ भूमि, यह वरदायिनी कल्याणी है
भारत छोड़ो के नारे की, बलिया एक अमिट निशानी है
जर जर तन बूढ़े भारत की, यह मस्ती भारी जवानी है