शहर छोड़ी चल गंउवें, चलि के कर किसानी सजना

बलिया। कवियत्री व अभिनेत्री राधिका तिवारी ने पूर्वांचल की युवतियों के दिलों में रंगमंच और साहित्य का सपना पैदा किया, जिससे इस रुढिवादी इलाके की अनेक महिलाएं अभिनय, गायन के क्षेत्र में आगे निकली. उक्त उदगार ख्यातनाम कवियत्री, अभिनेत्री, लोक गायिका राधिका तिवारी के 73 वें जन्म दिवस एवं उनके विवाह की वर्षगांठ पर अयोजित मंगलकामना संगोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किया.

कार्यक्रम का शुभारम्भ वाग्देवी मां सरस्वती की अर्चना वंदना से हुआ. साहू भवन में आयोजित संगोष्ठी का आगाज टीडी काॅलेज के संगीत विभाग के प्रवक्ता अरविन्द उपाध्याय ने सोहर ‘गह गह करता अंगनवा, सगरो भवनवा हो, ए ललना पुरा भईल अरमनवा’ से किया. डॉ. राजेन्द्र भारती ने काव्यांजलि जोडी ‘ घिस गया इतना कि चन्दन हो गया हूं, झुक गया हूं इतना कि वंदन हो गया हूं. राधिका जी के गीतकार बृजमोहन ‘अनारी’ ने कहा ‘नदिया के गिरत अरार भईल जीनगी, टूटल वीणा के तार भईल.’ डॉ. जनार्दन चतुर्वेदी कश्यप ने राधिका तिवारी के कलकत्ता से बलिया आने के सफर को काव्य में पिरोया ‘शहर छोड़ी चल गंउवें, चलि के कर किसानी सजना. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्य के भीष्म पितामह लालजी सहाय लोचन ने उनके परिजनों को इस क्षेत्र में उतारने के लिए साधुवाद दिया. विशिष्ट अतिथि बलिया हिन्दी प्रचारिणी सभा के मंत्री त्रिभुवन प्रसाद प्रीतम ने कहा ‘ भावनाएं हृदय में मचलती रहे, बांसुरी माधुरी प्रिय बजाते रहो.’

पूर्वांचल सांस्कृतिक प्रतिभा मंच उप्र द्वारा नियोजित इस संगोष्ठी में आचार्य धु्रवपति पाण्डेय ‘ध्रुव’, डाॅ0 शिवकुमार मिश्र, चन्द्रशेखर उपाध्याय, अशोक पत्रकार, बीएन शर्मा मृदुल, लाल साहब सत्यार्थी, डॉ. फतेहचन्द्र बेचैन, डॉ. संतोष प्रसाद गुप्त, उत्कर्ष तिवारी, पं. लालबचन मिश्र, सुदेश्वर अनाम, सूरज समदर्शी, अमावस यादव, सूर्यदेव तिवारी, आदि कवियों/वक्ताओं ने अपनी शुभकामनाएं राधिका तिवारी को दिया. अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. केपी श्रीवास्तव एवं संचालन शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने किया.

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