कटानरोधी कार्यों के लिए चला था आमरण अनशन, हुआ था, चक्काजाम
जयप्रकाशनगर से लवकुश सिंह
बैरिया तहसील क्षेत्र में ही बिहार की सीमा से सटे एक पंचायत है, इब्राहिमाबाद नौबरार. इसे लोग अठगांवा के नाम से भी जानते हैं. घाघरा कटान से तबाही की एक भयानक किस्से को समटे इस गांव की बची आबादी आज भी तब के हालात की कल्पना कर कांप जाती है. प्रस्तुत है इस गांव को बचाने के नाम पर अब तक हुए प्रयासों और तबाही कि एक ग्राउंड रिपोर्ट :
यह बात वर्ष 2014 की है, तब बैरिया तहसील का ही एक पंचायत इब्राहिमाबाद नौबरार घाघरा कटान की भयंकर तबाही से जूझ रहा था. वर्ष 2014 में इस पंचायत की लगभग 18 हजार अबादी पूरी तरह बर्बाद हो चली थी. गांव से तीन किमी दूर बहने वाली घाघरा, 250 एकड़ उपजाऊ खेतों को निगलने के बाद गांव के आलीशान मकानों को तेज गति से अपने गर्भ से समाहित करते जा रही थी. तब मात्र 15 दिनों में लगभग 350 आलीशान मकान सभी के आंखों के सामने ही, घाघरा में समाहित हो गए. तब कुल नौ किमी का बीएसटी बांध शरणार्थियों से भर गया था. गांव के लोग सरकार और रहनुमाओं पर इस कदर खफा थे कि कोई भी प्रतिनिधि या अधिकारी इस गांव में जाने से भी कतराता था. इतनी तबाही के बाद भी इस गांव की बची आबादी को घाघरा कटान से बचाने के लिए कुछ भी हुआ. हां, राजनीति जरूर हुई. तभी वर्ष 2015 में गांव के लोगों ने एक अलग रूख तैयार किया और बैठ गए बेमियादी अनशन पर.
गांव के दुर्गा मंदिर के उक्त स्थान पर उसी दरम्यान उनका हाल जानने तब एक आंदोलनकारी के रूप में जब बैरिया विधायकसुरेंद्र सिंह पहुंचे तो यह बेमियादी अनशन एक बड़े रूप में तब्दील हो गया. वजह कि उक्त अनशन में खुद सुरेंद्र सिंह भी शमिल हो गए. चार दिनों तक जब कोई जिम्मेदार अधिकारी वहां नहीं पहुंचा तो पांचवे दिन यह अनशन एक बड़े आंदोलन के रूप में तब्दील हो गया. पांचवे दिन हजारों लोगों के सांथ सुरेंद्र सिंह, मुक्तेश्वर सिंह आदि ने चांददियर चौराहे पर गांव के लोगों के सांथ पूरी तरह चक्का जाम कर दिया. उधर, बलिया के सभी थानों से पुलिस प्रशासन के सांथ, पीएसी तक का वहां भारी बंदोबस्त किया था. द्वाबा के कोने-कोने से हजारो लोग उस आंदोलन को देखने के लिहाज से वहां पहुंचे थे. सभी को याद है तब सुरेंद्र सिंह के रूप में द्वाबा के इस योगी से बलिया का पूरा प्रशासन हिल गया था. वह आंदोलन तब इस बात पर खत्म हुआ, जब बलिया से जिम्मेदार अधिकारी मौके पर पहुंचे और पांच दिनों के अंदर कार्य प्रारंभ करने का आश्वासन दिया. वही सुरेंद्र सिंह आज बैरिया के विधायक हैं और तब की देखी समस्याएं उनके सामने मौजूद है. आमलोग भी मानते हैं कि द्वाबा का यह विधायक सीएम योगी की ही राह पर चलने वाला हैं. विधायक ने देखा है प्रतिवर्ष बाढ़ से तबाही का वह मंजर, तब लोग तबाह रहते हैं और संबंधित विभाग अपनी जेब भरने में ही व्यस्त रहता है. बैरिया में मानव श्रृंखला बनाकर विधायक ने यह संकेत दे दिया है कि यदि समय रहते सर्वत्र कार्य प्रारंभ नहीं होते, तो संभव है, खुद की सरकार में भी ठीक इब्राहिमाबाद नौबरार की तरह ही एक नए आंदोलन का आगाज होगा.
खर्च हो गए धन, नहीं बदले उस गांव के हालात
मुरलीछपरा विकासखंड का पंचायत इब्राहिमाबाद नौबरार में उस आंदोलन के बाद गांव की बची आबादी को कटान से बचाने के लिए ऐसा नहीं की कटानरोधी कार्य नहीं हुआ, किंतु दुखद कि कार्य होने के बाद भी हालात जस के तस ही रह गए. तब यहां के लिए कुल 17 करोड़ एक लाख का एक प्रोजेक्ट पास हुआ था. उसी प्रोजेक्ट से 2015 में कार्य प्रारंभ हुआ. 2016 में भी गांव के लोगों के काफी हो-हल्ला करने पर उसी प्रोजेक्ट से कार्य हुआ. इस दरम्यान घाघरा के तेवर भी शांत रहे किंतु बाढ़खंड के अधिकारी इस बात को लेकर अपनी पीठ थपथपाने लगे कि उनके कार्यों के चलते ही यहां कटान थम गया, जबकि गांव के लोगों की माने तो इस प्रोजेक्ट में जम कर बाढ़ खंड के अधिकारियों ने अपनी मनमानी की. इतने ,खर्च के बाद भी यह गांव घाघरा कटान से सुरक्षित नहीं हो सका. आज भी इसकी गहन जांच करा दी जाए तो, इसमें कई संबंधित लोगों के गर्दन फंसने लगभय तय हैं.
सवाल-सूखे के समय मौन, बाढ़ के समय क्यों होता है कार्य ?
इब्राहिमाबाद नौबरार में बाढ़ खंड के कार्यशैली पर हर बार अंगुलियां उठते रही हैं. इस गांव के निवासी बार-बार वहीं सवाल करते हैं कि मार्च-अप्रैल में जब यहां नदी का पानी कम हो जाता है, तब इस गांव को बचाने पर कोई भी विभागीय चर्चा नहीं होती, यहां हर बार बचाव कार्य तभी शुरू होता है, जब नदी पानी से लबालब होने लगती है, और यहां कुछ भी करना संभव नहीं होता. यही हालात संपूर्ण द्वाबा का है. आमलोग यह मानते हैं कि यह सब इसलिए किया जाता है ताकि उनके कार्यों पर पर्दा पड़ा रहे. होता भी वहीं है विभाग हर साल कुछ न कुछ कार्य कराता है, और बाढ़ खत्म होने के बाद सबकुछ पहले जैसा ही दिखाई देने लगता है.