
[बलिया से कृष्णकांत पाठक]
बलिया कलेक्ट्रेट परिसर में एडीएम कार्यालय के बगल में भारत सरकार के मौसम विभाग नें ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन की स्थापना की थी, परंतु उसकी देखभाल की जिम्मेदारी किसी को नहीं सौंपी गई. नतीजतन वहां स्थान जंगल में तब्दील हो चुका है, मगर किसी के कान पर जू तक नहीं रेंग रहा है. हैरत की बात तो यह है कि जिला प्रशासन के पास इसके लिए फुरसत ही नहीं है. देखभाल करना तो बहुत दूर की बात है. मौसम संबंधित आंकड़ों को सहेजने के लिए यहां उपकरण और टॉवर लगाए गए हैं, मगर शायद ही कोई इसकी खोज खबर भी लेता होगा.
महीनों से मुख्य प्रवेश द्वार ही टूटा पड़ा है
गेट के अंदर एक बोर्ड लगा हुआ है, जिस पर अंग्रेजी में लिखा है कि इस वेदर स्टेशन की स्थापना एसजीएस वेदर इंफॉर्मेशन सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली ने किया है. बलिया जनपद स्तर पर इसकी देखभाल की जिम्मेदारी कलेक्ट्रेट के आपदा बाबू को सौंपी गई है. आपदा बाबू का कहना है कि इसके देखभाल के लिए गोरखपुर से इंस्पेक्टर समय-समय पर आया करते हैं.
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महंगे उपकरण रखरखाव के अभाव में कबाड़ में तब्दील
किसानों को मौसम संबंधी जानकारी समय रहते मिलनी चाहिए, मगर ऐसा नहीं होता. नतीजतन वे प्राकृतिक आपदाओं के चलते अक्सर अपना सब कुछ लुटा बैठते हैं. सरकारें किसानों को तकनीकी सहायता मुहैया करवाने के नाम पर करोड़ों की घोषणाएं करती हैं. मगर क्या उसका लाभ किसानों को मिलता है? जी नहीं. कारण, इसके लिए लगाए गए महंगे उपकरण रखरखाव के अभाव में कबाड़ में तब्दील हो रहे हैं, मगर कोई पुरसाहाल नहीं है. किसानों को उसका कोई फायदा नहीं मिल रहा है.