
बरसात न होने के वजह से खेती एक माह पिछड़ गई
बैरिया(बलिया)। लगातार दो दिनों तक हुई बरसात के बाद बुधवार की सुबह अनुकूल मौसम देख धरतीपुत्र अपने-अपने खेतों की ओर लपक पड़े. जिनके खेतों मे कीचड़ सी स्थिति रही वह ठहरे. जिनके खेत बुआई के लायक रहे वह बुआई में जुट गए है.
इस बार खरीफ की खेती बरसात समयानुकूल नहीं होने के चलते लगभग एक महीना पिछड़ गई है. जिसके वजह से किसान बरसात होने व मौसम अनुकूल होने की आस में टकटकी लगाए थे.
कोटवां गाँव निवासी किसान मित्र व उत्कृष्ट किसान हृदयानन्द सिंह का कहना है कि परम्परागत रूप से रोहिणी नक्षत्र में बरसात हो जाय, मृगशिरा में तपन हो तब आर्द्रा नक्षत्र के शुरुआती तीन दिन छोड़ कर बुआई शुरू कर दी जाती है. खेती बरसात पर आधारित होती है. इस साल समय से बरसात न होने से सब गड़बड़ हो गया है. खेती एक माह पिछड़ गई है.
बता दें कि इस सीजन में द्वाबा में खासतौर पर मक्का, जोन्हरी, बाजरा, अरहर, मूंग, उड़द, सांवा, टांगुन आदि फसलों की बुआई होती है. इसके साथ ही सब्जी के लिए बरबट्टी, कोहड़ा, सतपुतिया आदि भी बोई जाती है. नकदी के लिए किसान मिर्चा, टमाटर, गोभी, बैगन आदि के भी पौध लगाते हैं.
द्वाबा में परम्परागत तौर पर धान की खेती नहीं होती थी. लेकिन एक दशक से कुछ किसान धान की भी खेती करने लगे है. लेकिन इस सीजन में मक्के की खेती अधिक होती है. बरसात होने में विलम्ब के चलते किसान परेशान थे. कुछ लोग आर्द्रा नक्षत्र पूर्व हल्की बरसात पर ही मक्के की बुआई कर दिए थे. जो नुकसान हो गया. फिर से बुआई करनी पड़ेगी. दो दिनों तक बरसात के बाद बुधवार को बारिश खुली तो किसान तेजी में आ गए. यद्यपि अपराह्न हल्की बरसात हुई. लेकिन जो अपना काम दोपहर से पूर्व निपटा लिए उनके लिए अच्छा माना जा रहा है.
किसान सुविधाओं पर नजर दौड़ाएं तो साधन सहकारी समिति पर यूरिया खाद उपलब्ध है.
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राजकीय कृषि बीज भण्डार बैरिया के इंचार्ज सहायक विकास अधिकारी सुशील यादव ने बताया कि उनके केन्द्र पर मक्का के उन्नतिशील बीज युवराज गोल्ड, सीड टेक 740, एलजी 3281, मल्लिका, सूर्या बीज उपलब्ध है. यह फसल 90-95 दिन में तैयार हो जाती है. धान की खेती के लिए 27P31, 27P63, अराज 6444 गोल्ड बीज उपलब्ध है. किसान औपचारिकताएं पूरा कर बीज ले सकते हैं और सरकार द्वारा निर्धारित लाभ प्राप्त कर सकते है.
सहायक विकास अधिकारी ने जोर देते हुए कहा की हमारे केन्द्र पर जैविक खेती के लिए ढ़ैंचा का बीज उपलब्ध है. एक बार इसकी खेती कर देने से खेत की नैसर्गिक गुणवत्ता काफी बढ़ जाती है. तीन साल तक जमीन की उत्पादकता बहुत अधिक हो जाती है. यहां के जमीन के लिए ढ़ैंचा की खेती हर तीन साल के अन्तराल पर कर लेना बहुत उपयोगी रहेगा.