जयप्रकाशनगर (बलिया) से लवकुश सिंह
खाए नहाय
छठ पूजा व्रत चार दिन तक किया जाता है. इसके पहले दिन नहाने खाने की विधि होती है. जिसमें व्यक्ति को घर की सफाई कर स्वयं शुद्ध होना चाहिए तथा केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए.
खरना
इसके दूसरे दिन खरना की विधि की जाती है. खरना में व्यक्ति को पूरे दिन का उपवास रखकर, शाम के समय गन्ने का रस या गुड़ में बने हुए चावल की खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए. इस दिन बनी गुड़ की खीर बेहद पौष्टिक और स्वादिष्ट होती है.
http://pinakpost.com/railways-for-now-any-waist-chhath-festival/
शाम का अर्घ्य
तीसरे दिन सूर्य षष्ठी को पूरे दिन उपवास रखकर शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पूजा की सामग्रियों को लकड़ी के डाले में रखकर घाट पर ले जाना चाहिए. शाम को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर आकर सारा सामान वैसी ही रखना चाहिए. इस दिन रात के समय छठी माता के गीत गाने चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए.
सुबह का अर्घ्य
इसके बाद घर लौटकर अगले (चौथे) दिन सुबह-सुबह सूर्य निकलने से पहले ही घाट पर पहुंचना चाहिए. उगते हुए सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य देना चाहिए. इसके बाद घाट पर छठ माता को प्रणाम कर उनसे संतान-रक्षा का वर मांगना चाहिए. अर्घ्य देने के बाद घर लौटकर सभी में प्रसाद वितरण करना चाहिए तथा स्वयं भी प्रसाद खाकर व्रत खोलना चाहिए.
https://ballialive.in/9869/too-ta-anhar-hawe-re-batohiya-bahangi-chatha-maiya-ke-jaye/
छठ पर्व की मान्यता-मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु इस महाव्रत को निष्ठा भाव से विधिपूर्वक संपन्न करता है वह संतान सुख से कभी अछूता नहीं रहता है. इस महाव्रत के फलस्वरूप व्यक्ति को न केवल संतान की प्राप्ति होती है बल्कि उसके सारे कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं.
बारह वर्ष बाद है डाला छठ का ऐसा संयोग
लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा पर इस वर्ष कार्तिक शुक्ल षष्ठी को बारह वर्ष के बाद ऐसा खास संयोग भी बन रहा है. जयप्रकाशनगर के दलजीत टोला निवासी आचार्य ओमप्रकाश चौबे के अनुसार पहला अर्घ्य रविवार को होने और चंद्रमा के गोचर में रहने से सूर्य आनंद योग का संयोग बन रहा है. यह खास संयोग लगभग 12 वर्षों के बाद बना है. इस बार के छठ महापर्व पर चंद्रमा और मंगल के एक साथ मकर राशि में रहने से महालक्ष्मी की भी कृपा व्रतियों पर बरसेगी. वहीं चंद्रमा से केन्द्र में रहकर मंगल के उच्च होने या स्वराशि में होने से पंच महापुरुष योग में एक रूचक योग भी षष्ठी-सप्तमी को बनेगा.
नहाय-खाए: 4 नवंबर (शुक्रवार)
खरना (लोहंडा): 5 नवंबर (शनिवार)
सायंकालीन अर्घ्य- 6 नवंबर (रविवार)
प्रात:कालीन अर्घ्य: 7 नवंबर (सोमवार)
सायंकालीन अर्घ्य का समय :- शाम 5.10 बजे
प्रात:कालीन अर्घ्य का समय: प्रात: 6.13 बजे
छठ पर ग्रहों की स्थिति
सूर्य, बुध -तुला में होंगे. शुक्र व शनि-वृश्चिक में, मकर में मंगल और चंद्रमा, केतु-कुंभ में, राहू-सिंह में और गुरु कन्या राशि में होंगे.
शनिवार को खरना से दूर होंगे दोष:
शनिवार को खरना होने से शनि की साढ़े साती से पीड़ित व्यक्ति को खास लाभ होगा. साथ ही अन्य शनि दोष से भी मुक्ति मिलेगी. कार्तिक मास शुक्ल षष्ठी को सूर्य साधना का महापर्व छठ पूजा के रूप में प्राचीन काल से मनाने की परम्परा अनवरत चली आ रही है. छठ पूजा वास्तव में सूर्य साधना का श्रेष्ठतम पर्व है. इसकी मान्यता सर्वत्र है, जिसका प्रमाण ऋग्वेद के सूर्य सूक्त में इस प्रकार दिया गया है- ‘येना पावक चक्षसा भुरण्यंतम् जनां अनु। त्वं वरुण पश्यसि।’ अर्थात् जिस दृष्टि यानी प्रकाश से आप (सूर्य) प्राणियों को धारण-पोषण करने वाले इस लोक को प्रकाशित करते हैं, हम उस प्रकाश की स्तुति करते हैं.