तो मजूर मियां इस साल भी करेंगे छठ व्रत

जयप्रकाशनगर बलिया से लवकुश सिंह

LAVKUSH_SINGHलोक आस्था का पर्व छठ केवल हिंदू ही नहीं करते, जेपी के पैतृक गांव लाला टोला सिताबदियारा में एक मुस्लिम परिवार भी है, जो उसी आस्था से सूर्य उपासना का छठ हिंदुओं के सांथ मिलकर करता है. इतना ही नहीं छठ घाटों पर व्रतियों की सेवा करने से भी लाला टोला निवासी मजूर मियां कभी पीछे नहीं रहते. छठ के प्रति उनकी गहरी आस्था कोई आज से नहीं, वर्ष 1980 से है. उनकी गहरी आस्था को देखकर ही गांव के सभी हिंदू परिवार इस पर्व में उनका भरपूर सहयोग करते हैं. इस साल भी मंजूर मियां छठ करने के लिए तैयार हैं.

जब उनसे यह जानने का प्रयास किया कि आखिर यह सूर्य उपासना का छठ करने की प्रेरणा उन्हें कहां से मिली? इस पर मजूर मियां ने बताया कि मेरा ननिहाल छपरा के शीतलपुर में है. बचपन में मेरे चेहरे पर एक लहसन का दाग था, तभी मेरे ननिहाल में ही इस दाग को छुड़ाने के लिए छठ व्रत की मन्नतें मांगी गई. कहा यह भी गया कि छठी मईया यह दाग ठीक कर दें तो मै आजीवन उनका व्रत रखूंगा. कुछ दिनों के बाद वह दाग गायब हो गया और मै सूर्य उपासना का यह छठ करने लगा. वर्ष 1980 से शुरू किया यह व्रत मै प्रति वर्ष करता हूं. हां, कभी गांव नगर में कोई दुखद घटना हो जाती है तभी इस व्रत पर विराम लगता है. अन्यथा घोर संकट में भी मै इस व्रत को करने से पीछे नहीं हटता.

भीख मांग कर करते हैं पूजा की तैयारी

मजूर मियां बताते हैं कि छठ में भीख मांगने का भी बड़ा महत्व है. वैसे लोग इस मामले में शर्माते हैं, किंतु छठ में संपंन लोगों को भी इस परंपरा का निर्वाह करना चाहिए. बताया कि मै संपूर्ण सिताबदियारा में छठ पूजा के लिए भीख मांगता हूं. सांथ में सभी के सांथ मिल कर तैयारी करता हूं. छठ के हर नियमों का पालन करने के सांथ-सांथ, छठ के दिन सुबह चाय, दातून से व्रतियों की सेवा करता हूं. इसके अलावां डंके की ध्वनि से छठ घाट की शोभा भी बढाता हूं. यह सब करने से मेरे मन को बेहद शांति मिलती है. इसके अलावा यहां और भी कई घरों के मुसलिम परिवार छठ का प्रसाद खरीद कर हिंदुओं को चढाने के लिए देते हैं.

जेपी के जमाने से ही मजूर की डुग्गी, देती है सूचनाएं

सिताबदियारा के लाला टोला निवासी मजूर मियां पेशे से डुग्‍गी बजाने का काम करते हैं. किसी बड़े नेता का जेपी के गांव में आगमन हो तो मजूर की डुग्गी यानि डंका उनके आगवानी में पहले से खड़ा होता है. जब मंजूर अपनी डुग्गी लेकर गांव में निकलते हैं तो हर कोई समझ जाता है कि कोई न कोई महत्‍वपूर्ण सूचना है. गरीबी की चादर में लिपटे मजूर को जेपी के गांव का निवासी होने का भी गर्व कम नहीं है. इनकी सूचना देने का अंदाज भी बेहद निराला है. बताते हैं वह यह काम जेपी जब जीवित थे, तभी से कर रहे हैं.

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