धरती पर करीब सौ करोड़ प्रकार के रामायण ग्रंथ मौजूद हैं

गाजीपुर। ‘गुरु के रज मात्र से ही सैकड़ों जन्मों के पाप कट जाते हैं. गुरु रज के साथ गुरु चरण जिसने पा लिया, समझो उस जीव का जीवन धन्य हो गया.’ मंगलवार को गाजीपुर के सैदपुर क्षेत्र के देवचंदपुर पेट्रोल पंप स्थित मैदान में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा में विख्यात संत श्री प्रेम भूषण जी महाराज ने अपने मुखारबिंद से कहीं.

हम रामजी के, रामजी हमारे हैं’ से अपने उद्बोधन की शुरुआत करते हुए संत श्री ने कहा कि धरती पर मानव जीवन पाना बड़े ही भाग्य की बात है. लेकिन जिन महान कर्मों व कठिन यत्नों से मानव योनि मिलती है, उन यत्नों को मानव धरती पर आते ही भूल जाता है और क्रीड़ा व सांसारिक मोह में फंस कर रह जाता है. संत श्री ने उपस्थित लोगों को समझाते हुए कहा कि पिछले जन्म के जितने सत्कर्म से मानव योनि मिलती है उससे भी ज्यादा सत्कर्मों के बाद रामकथा के रसास्वादन का सौभाग्य मिलता है.

यह मानव चित्त भगवत कार्य में लगने में बड़ा आनाकानी करता है, लेकिन अगर एक बार लग गया तो इसे ईश्वर से दूर करना खुद भगवान के वश में भी नहीं होता है. रामचरित मानस से भी पूर्व का ग्रंथ हैं, वह रामायण हैं. पूरी दुनिया में रामायण एक नहीं हैं. इसे परिभाषित करते हुए संत श्री ने कहा कि ‘रामायण शतकोटि असारा.’ यानी धरती पर करीब सौ करोड़ प्रकार के रामायण ग्रंथ मौजूद हैं. ऐसे में भारत के हर एक के हिस्से में एक रामायण हैं.

राम कथा रूपी कथामृत की वर्षा करते हुए कहा की रामचरित मानस सभी ग्रंथों का मूल है. अगर रामचरित मानस का श्रवण कर लिया तो समझो सभी का श्रवण कर लिया. रामकथा में प्रथम पांच दिन बाल कांड में बीत जाते हैं. जिसमें जन्म, विवाह से लगायत प्रभु श्रीराम की कई लीलाएं हैं. दुनिया के हर कार्य को रामजी की इच्छा बताते हुए कहा कि धरती पर एक उनकी मर्जी के बिना एक कण भी नहीं हिल सकता. दुनिया की चिंताओं से मुक्त होना है तो प्रभु श्रीराम में लीन हो जाओ. इसके पूर्व कथा का शुभारम्भ परम संत श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने दीप प्रज्जवलित कर कराया. दीप प्रज्जवलन परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन मनोज पांडेय के पिता गोपीचंद पांडेय व कारगिल शहीद संजय यादव के भाई अजय यादव के हाथों हुआ. इसके पश्चात सभी ने महाराज जी से आशिर्वाद लिया. इस मौके पर आयोजक विजय पांडेय, सीमा पांडेय, गोरखनाथ पांडेय, कृष्णा पांडेय समेत हजारो की संख्या में लोग उपस्थित थे.

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