दो साल के बेटे को मन करता देखने का तब जाते घर, लौट आते हैं बाहर से ही

कोरोना महामारी को खत्म करने के संकल्प के साथ कर रहे काम
पहले डाक्टर का फर्ज तब घर-परिवार


बलिया। कोविड-19 के संक्रमण से जूझ रही दुनिया, घरों में कैद है. आवाम और वे दिन-रात जनमानस की हिफाजत में लगे हैं, जी-जान से. इनके लिए फर्ज पहले और बाद में आता है परिवार. एक महीने से घर के अंदर नहीं हुए दाखिल और दो साल के बेटे की याद आयी तो दायित्वों के निर्वहन के पश्चात ही रुख करते घर की ओर.

बाहर से ही बच्चे को देख लिया और निकल पड़े फिर ड्यूटी निभाने. जानते हैं कि बड़ी खतरनाक है ड्यूटी, फिर भी किसी तरह का खौफ नहीं और संकल्प ये कि कोरोना जैसी महामारी को परास्त करके ही लेंगे दम. यही तो वो जज्बा है इनका कि पूरा देश ऐसे लोगों को सलाम कर रहा है.



चर्चा यहां जिला महिला चिकित्सालय स्थित प्रसवोत्तर केंद्र (पीपी सेंटर) में कार्यरत नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ मणि दूबे की हो रही है, जो कोरोना वायरस से बचाव एवं रोकथाम की निगरानी के लिए बनी सर्विलांस मैनेजमेंट टीम में पिछले एक माह से कार्य कर रहे हैं. बड़ी बात यह कि इस टीम में कार्य करने के साथ अगर कोई नवजात शिशु की दिक्कत लेकर आता है तो उसको भी देखने का काम करते हैं. जब से इस आपदा में ड्यूटी लगी तब से वह काम से लौटने के बाद घर भी जाना छोड़ दिए हैं.


डॉ. दुबे का ढाई साल का बेटा है, जिसे देखना भी होता है तो वह सिर्फ घर के बाहर से देखकर वापस चले आते हैं. यानी इस बीच वह परिवार से पूरी तरह दूर हैं. उनका कहना है कि परिवार से पहले फर्ज है, जिसे चिकित्सक बनने की पढ़ाई के दौरान बकायदा बताया गया था. एक डॉक्टर के दायित्व को निभाने के लिए इससे बेहतर समय शायद ही कभी मिलने वाला. अब तो इस बीमारी को पूरी तरह खत्म करने का संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं. पूरा मेडिकल स्टाफ जिस तरह निडर होकर काम कर रहा है उससे तो यह तय है कि अब यह बीमारी ज्यादा दिन हमारे देश में टिकने वाली नहीं.

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