
पारंपरिक नहीं, इस बार बैरिया में हर जगह होगी सियासी होली
लवकुश सिंह
बैरिया विधान सभा की राजधानी कह लें, या राजनीतिक मंथन का केंद्र, यह है बैरिया तिमुहानी. शुक्रवार शाम का समय है और एक पान की दुकान पर दो जन अपनी पान की गिलौरी मुंह में इत्मीनान से घुलाते हुए राजनीति की चर्चा कर रहे हैं. सभी चैनलों का एग्जिट पोल भी आ चुका था. राजनीतिक चर्चा चल रही है, लगता है सही में बीजेपी आगे जा रही है. दोनों में से एक ने कहा और अपने नजरिए से बात को बढ़ाने लगा.
चर्चा अभी चल ही रही थी कि एक बाइक सवार पान-दुकान के पास रुका. गुटखा खरीदने के लिए हड़बड़ी में उतरा. दुकानदार उसकी पसंद का गुटखा ढूंढ़ने में लग गया और इसी दरम्यान उसके कानों में पान-दुकान पर चलती चर्चा के बोल पड़े. उसने बिना वक्त गंवाए अपना फैसला सुना दिया, ‘भैया अइसन बा कि बीजेपी जीत रहल बा, बल्कि बीजेपी जीत गईल बा, आउर ओकरे सरकार भी बने जा रहल बा. हमार बात के गांठ बांध ल लोग. बात केवल बैरिया विधान सभा पर ही नहीं हो रही थी, यहां चर्चा छोटी थी, किंतु एक झटके में प्रदेश स्तर पर सरकार बन-बिगड़ रही थी. बाइक सवार जिस रफ्तार से आया, इतनी बात कह कर तकरीबन उसी रफ्तार से अगले कुछ पलों में रफूचक्कर भी हो गया.
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उसके पीछे रह गए पान, गुटखा और सिगरेट के साथ वहां अपने ख्यालों में गुम लोग और रह गई सोचने के लिए बाइक सवार के मुंह से निकली बात. यह बात किसी बीजेपी कार्यकर्ता के मुंह से नहीं बल्कि एक आम मतदाता की जुबान से निकली थी, इसलिए वह खास मायने रखती है. इसके अलावा इसी विधान सभा के खास जमावड़े वाले स्थान हैं रानीगंज बाजार, लालगंज बाजार, टोला शिवन राय बाजार, दोकटी बाजार, जयप्रकाशनगर का बाबू के डेरा बाजार.
मतगणना से पूर्व एक भ्रमण में हर जगह जीत-हार की चर्चा के सांथ में होली की भी चर्चा थी. उनकी चर्चा में दम इसलिए भी था कि होली से पहले ही मतगणना हो जा रही है. जीत-हार स्पष्ट होने के बाद यह भी सही है कि कहीं खूब सियासी गुलाल उड़ेंगे, वहीं कहीं इस बात का मलाल रह जाएगा कि कि काश ! हम थोड़ी मेहनत और किए होते तो आज हमारी होली भी रंगीन होती. दरअसल यह चुनाव केवल नेताओं और पार्टी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आमलोग भी जीत-हार से काफी प्रभावित होने वाले हैं. मसलन गांव स्तर पर भी इस बार की होली सियासी जीत-हार पर निर्भर थी.
बहुत दिनों बाद, व्यक्ति को नहीं, पार्टी को दिया सबने वोट
मतगणना से पूर्व यह बात भी इस बार खुलकर सामने आई कि इस बार आम मतदताओं ने अपना वोट किसी व्यक्ति को नहीं, बल्कि पार्टी को ही आधार मान कर किया है. जबकि इससे पहले विधान सभा चुनाव में पार्टी नहीं चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी का व्यक्तित्व देख कर लोग वोट करते थे. इस बार सबकी सोंच विपरीत थी. कहीं पर मोदी पर फिदा युवाओं का दल था, तो कहीं अखिलेश यादव के रंग में रंगे युवा थे. चुनाव के बाद भी लगभग जगहों पर वही तस्वीर है. यहां दिलचस्प पहलु यह भी है कि भाजपा और सपा के मतदाता जहां अपनी डफली और अपना राग लेकर बाजारों में चुनाव के पहले भी थे, और चुनाव के बाद भी सरकार बनाते-बिगाड़ते मिल रहे हैं, वहीं मायावती की बसपा समर्थक तब के समय में भी और और अब के समय में भी पूरी तरह साइलेंट मोड में ही रहे.