सिकंदरपुर को चाहिए एक पार्क, जहां मन गार्डेन गार्डेन हो जाए

सिकंदरपुर (बलिया) से संतोष शर्मा 

भारतीय गांव आज धीरे-धीरे लघु शहर एवं नगर- महानगर में परिवर्तित होते जा रहे हैं. नगरों का यह विस्तार व गांव का शहरीकरण हमें प्रकृति से काफी दूर ले जा चुका है. इसीलिए आज के दैनिक जीवन में पार्कों की उपयोगिता काफी बढ़ गई है. यह पार्क मनुष्य को प्रगति के निकट लाने में कृत्रिम मानवीय प्रयास है, जो उसके मन मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है.

पार्कों में खड़े पेंड़, वहां की हरियाली व फूलों का सौंदर्य मन को आनंदित कर देते हैं, किंतु अफसोस की आबादी बढ़ने के बावजूद सिकंदरपुर के लोग एक अदद पार्क के लिए तरस रहे हैं. कोई ऐसी सरकारी जमीन नहीं छोड़ी गई है, जिस पर पार्क बना नागरिकों के व्यस्त जीवन में कुछ क्षण शांति उपलब्ध कराई जा सके. उन्हें सत्यम शिवम सुंदरम के रूप में साक्षात दर्शन कराया जा सके. लोगों के तनावग्रस्त मन व व्याधि पूर्ण शरीर के लिए स्वास्थ्य संजीवनी उपलब्ध हो सके, जबकि यहां एक पार्क के निर्माण की लोगों की पुरानी मांग है.

जमीन की अनुपलब्धता के कारण नगर पंचायत प्रशासन भी इस तरफ से बेपरवाह है. नगर पंचायत अध्यक्ष सावित्री देवी ने बताया की आवश्यकता को देखते हुए पिछले वर्ष दरगाह के विशाल मैदान में पार्क बनवाने हेतु शासन को लिखा गया था. स्वीकृति नहीं मिलने और लोगों द्वारा मैदान में पार्क के निर्माण का विरोध किए जाने से नहीं बन पाया. मैदान के मात्र सुंदरीकरण का काम ही कराया जा सका.