


लखनऊ/बलिया। प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने शनिवार को भारतीय निर्वाचन आयोग की सलाह पर जनपद के रसड़ा क्षेत्र के विधायक उमाशंकर सिंह की विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी. श्री सिंह पर यह आरोप था कि विधायक रहने के बावजूद भी उन्होनें अपनी फर्म पर सरकारी ठेके लिए. अब यक्ष प्रश्न यह है कि क्या 2012 से अब तक उन्हें प्राप्त वेतन भत्तों आदि की वसूली होगी या नहीं. दूसरा प्रश्न यह है कि क्या वें 2017 का चुनाव लड़ने के पात्र होंगे या नहीं.

एडवोकेट सुभाष चन्द्र सिंह ने 18 दिसम्बर, 2013 को शपथ पत्र देकर उमाशंकर सिंह के विरूद्ध यूपी के लोकायुक्त शिकायत दर्ज कराई थी.
शिकायत में कहा गया था कि विधायक निर्वाचित होने के बाद भी वे सरकारी ठेके लेकर सड़क निर्माण का कार्य करते आ रहे थे. तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा की जांच में आरोप विधायक पर सिद्ध हुए थे. इसके बाद यह रिपोर्ट राज्यपाल के पास भेज दी गई थी. विधायक उमाशंकर सिंह ने राज्यपाल राम नाईक के सामने अपना पक्ष 16 जनवरी 2015 को रखा था. तमाम बातों को सुनने के बाद राज्यपाल ने आरोपों को सही पाते हुए 29 जनवरी, 2015 को उमाशंकर सिंह को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया था.
शिकायत में कहा गया था कि विधायक निर्वाचित होने के बाद भी वे सरकारी ठेके लेकर सड़क निर्माण का कार्य करते आ रहे थे. तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा की जांच में आरोप विधायक पर सिद्ध हुए थे. इसके बाद यह रिपोर्ट राज्यपाल के पास भेज दी गई थी. विधायक उमाशंकर सिंह ने राज्यपाल राम नाईक के सामने अपना पक्ष 16 जनवरी 2015 को रखा था. तमाम बातों को सुनने के बाद राज्यपाल ने आरोपों को सही पाते हुए 29 जनवरी, 2015 को उमाशंकर सिंह को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया था.
राज्यपाल के निर्णय के विरूद्ध अयोग्य घोषित विधायक उमाशंकर सिंह ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में वाद दायर किया था, जिस पर 28 मई, 2015 को निर्णय देते हुये न्यायालय ने कहा था कि चुनाव आयोग प्रकरण में स्वयं शीघ्रता से जांच कर निर्णय से राज्यपाल को अवगत कराए और इसके बाद राज्यपाल प्रकरण में संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत अपना निर्णय लें. उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में भारत निर्वाचन आयोग ने विधायक उमाशंकर की प्रकरण में जांच की एवं सुनवाई का अवसर प्रदान किया. इस दौरान राज्यपाल ने चुनाव आयोग की तरफ से देरी होने पर 4 बार पत्र भी लिखा. आखिरकार 10 जनवरी को चुनाव आयोग ने भी विधायक की सदस्यता ख़त्म करने का निर्णय सही पाया और राज्यपाल को इससे अवगत भी करा दिया. इसके बाद राज्यपाल ने यह निर्णय लिया.