

सिकंदरपुर(बलिया)। माहे रमजान में अकीदत के साथ रोजा रखना अल्लाह पाक की सच्ची इबादत है. इसी महीने में इंसान की भलाई के लिए कुरान शरीफ नाजिल हुआ. यह मुकद्दस किताब बुराई और अच्छाई में अंतर करने में मददगार है. सब्र और गरीबों की मदद के इस महीने में की गई नेकी रोजेदारों के पूरे वर्ष काम आती है. उसे मरने के बाद जन्नत नसीब होती है.
हाफिज सद्दाम हुसैन इमाम नूरानी मस्जिद मुहल्ला मिल्की ने बताया कि रमजान के महीने तीन असरा में बांटा गया है. अरबी भाषा में आसरा को दस कहते हैं. पहला आसरा यानी 10 दिन रहमत का है. दूसरा अशरा गुनाहों की माफी का, जबकि तीसरा अशरा जहन्नुम से रिहाई का है. रमजान के महीने में वाद नवाज ऐसा एक खास नमाज अदा की जाती है. जिसे तराबीह कहते हैं. इस नमाज की काफी फजीलत है. अल्लाह पाक ने इस नमाज के जरिए बंदे को साल में कम से कम एक बार पूरी कुरान को अपने कानो से सुनने का मौका फराहम किया है.

कहा कि रोजे की हालत में तकबा करना बहुत जरूरी है. यानि रोजेदार बुरे कामों व बुरी बातों से परहेज ना करें साथ ही नेक काम ना करें तो रोजेदार के भूखे और प्यास रहने से अल्लाह पाक को कोई मतलब नहीं. अल्लाह पाक का साफ फरमान है कि मेरा मकसद तुम्हें सिर्फ भूखा प्यासा रखना नहीं बल्कि रोजे की हालत में बुरे कामों से महरूम रखना है. नेक कामों की ओर मुड़ना है. इसलिए मुसलमानों को चाहिए कि वह रमजान के रोजे से महरूम ना रहे साथ ही नेकी के काम करने के साथ ही तराबीह की नमाज जरुर पढ़ें.